मत्स्य पुराण में सहदेव अधिकार नाम का एक चैपटर है। उसमें बताया गया है की देवता और मनुष्य एक साथ रहते थे। मनुष्य को घमंड हो गया, तो देवता कल्पवृक्ष लेकर स्वर्ग चले गए। मनुष्य पृथ्वी पर जो भी चीज़ थी वह खाने लगा।पानी पीने लगा। मत्स्य पुराण में पाकड़ वृक्ष का नाम आता है। इसे खाने से मनुष्य में भौतिकता आने लगी। भूख, प्यास, बुढ़ापा सब मनुष्य को होने लगा। तंग होकर मनुष्य ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी ने कहा तुमने गलती की है अब भुक्तो। देवता तुमसे ऊपर है। फिर उन्होंने संसार के पहले सम्राट पृथु को बुलाकर कहा।मनुष्य के लिए आवास की व्यवस्था करो, जिससे उनको भौतिक ताप नहीं सताए। पृथु निर्माण कार्य करने लगे हैं, अनाप शनाप करने लगे।बिना नियम करने लगे।पृथ्वी गाय का रूप धारण करके ब्रह्मा जी के पास आई और बोली मनुष्य काम तो कर रहे हैं पर ढंग से नहीं कर रहे। मेरे साथ अन्याय कर रहे हैं, मुझे तकलीफ होती है। तब ब्रह्मा जी ने अपने मानसपुत्र विश्वकर्मा को बुलाया और पृथु को भी बुलाया। पृथु से कहा तुम निर्माण कार्य करो पर टेक्निकल ओपिनियन के लिए तुम्हें विश्वकर्मा से सलाह लेनी पड़ेगी और विश्वकर्मा से कहा कि बिना राजदंड के भय के जो उचित होगा वही तुम पृथु को बताओगे। पृथु को यह भी हिदायत दी कि तुम कोई भी बड़ा निर्माण कार्य विश्वकर्मा की अनुमति, सहमति के बिना नहीं करोगे।शरीर और मकान का सवस्थ और संतुलित होना बहुत जरुरी है।
सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल
इंटरनेशनल वास्तु अकडेमी
सिटी प्रेजिडेंट कोलकाता
जैसे ही व्यक्ति जन्म लेता है, हम उस समय की जन्मपत्रिका बनाते हैं और आजीवन उसी पत्री से उसके जीवन के अलग अलग क्षेत्रों के विषय में बताते हैं। जन्मपत्रिका को हम आम भाषा में भाग्य बोलते हैं और ये हमारे प्रारब्ध से आती है। सुव्यवस्थित एवं सुचारु रूप में जीवन जीने के लिए ‘आवास’ प्राथमिक आवश्यकता है। प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवनकाल में विभिन्न प्रकार की समस्याओं से जूझता रहता है। यद्यपि व्यक्ति के पास ज्ञान व अनुभव एवं संसाधनों की कमी नहीं है तथापि वह इतना क्यों जूझता रहता है। हमारे ऋषियों ने इस बात को समझ कर गहन-चिन्तन व मनन कर यह तथ्य जाना और निर्धारित किया कि जीवन रूपी रथ के दो पहिए तन व मन हैं व उन दोनों का ही स्वस्थ व संतुलित होना अनिवार्य है। वे सभी प्रकृति के तीनों बलों एवं पंचमहाभूतों पर आधारित हैं। किसी भी वस्तु का जीवन में क्या उपयोगी स्थान है, इसी बात का महत्त्व है। वास्तु शास्त्र का महत्त्व भी जीवन में इसके उपयोगी तत्त्वों-पंच महाभूतों (भूमि, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश) से निर्मित वातावरण से सामंजस्य के कारण है। इनके संतुलन से मनुष्य का जीवन तन व मन सक्रिय रहता है तथा असंतुलन से निष्कि्रय हो जाता है। वास्तुशास्त्र ही मात्र ऐसा शास्त्र है जो मानव की क्षमताओं को विकसित करने के लिए इन महाभूतों को विकसित करने के लिए इन महाभूतों का सहारा लेता है, अतः इसकी उपयोगिता प्रमाणित हो जाती है।
हम कैसे घर में रहेंगे और किन दोषो से ग्रषित होंगे ये भी हमारी जन्मपत्रिका से बताना संभव है। शास्त्र और गुरुओ से अर्जित ज्ञान और अनुभव के आधार पर ये कहा जा सकता है की जब हम कोई घर निर्माण करते है या अपने कार्य करने की जगह का निर्माण करते है उसी समय अगर वास्तु सम्मत निर्माण करे तो हम अपना ये जन्म तो सार्थक करेंगे ही साथ ही ऐसे सन्तानो को पीछे छोड़ जायेंगे जो अपना और लोक कल्याण दोनों करेंगे।