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जीवनसाथी चुनने के लिए उम्र कोई बाधा नहीं

  70 वर्षीय मोहम्मद कलीमुल्लाह नूरानी और 25 वर्षीय रेशमा परवीन की शादी ने यह साबित कर दिया कि जीवनसाथी चुनने के लिए उम्र कोई बाधा नहीं होती। बिहार के गया जिले में संपन्न इस अनोखे विवाह ने न केवल गांव में बल्कि सोशल मीडिया पर भी खूब सुर्खियां बटोरीं। यह शादी किसी धूमधाम या तामझाम से दूर, सादगी और आपसी रजामंदी का उदाहरण बनी। मोहम्मद कलीमुल्लाह अपनी दुल्हन रेशमा को कार में बिठाकर सीधे अपने गांव बैदा ले गए, जहां परिवार और ग्रामीणों ने इस रिश्ते को सहजता से अपनाया।
  इस शादी के पीछे की वजह भी बेहद खास है। कलीमुल्लाह की पहली पत्नी का निधन हो चुका था और उनके दोनों बेटे शादीशुदा होकर अलग रहते थे। अकेलेपन और दैनिक जीवन की कठिनाइयों के चलते उन्होंने एक जीवनसाथी की जरूरत महसूस की। हमजापुर की रहने वाली रेशमा परवीन ने उनकी परिस्थितियों को समझा और अपनी मर्जी से इस रिश्ते को स्वीकार किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस विवाह में किसी भी तरह का दबाव नहीं था और वे कलीमुल्लाह के साथ अपनी नई जिंदगी की शुरुआत को लेकर खुश हैं।
  इस शादी ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया और इसे लेकर विभिन्न प्रतिक्रियाएं सामने आईं। कुछ लोगों ने इसे "जरूरत का रिश्ता" बताया, तो कुछ ने इसे प्यार और समझ का बेहतरीन उदाहरण माना। इस विवाह ने यह संदेश दिया कि रिश्तों को उम्र, सामाजिक स्थिति या परंपराओं की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता। जब दो लोग अपनी मर्जी से एक-दूसरे का जीवनसाथी बनने का निर्णय लेते हैं, तो यह उनका व्यक्तिगत अधिकार है।
  गया की इस अनोखी शादी ने यह साबित किया कि जीवन के हर मोड़ पर प्यार और साथ की जरूरत बनी रहती है और यह किसी भी उम्र में दस्तक दे सकता है।