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श्रावण मास में शिवलिंग पर दूध क्यों चढ़ाया जाता है ? क्या है इसमें वैज्ञानिक पक्ष ?

    ज़रा गौर करो, हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है | ये इस देश का दुर्भाग्य है कि हमारी परम्पराओं को समझने के लिए जिस विज्ञान की आवश्यकता है वो हमें पढ़ाया नहीं जाता और विज्ञान के नाम पर जो हमें पढ़ाया जा रहा है उस से हम अपनी परम्पराओं को समझ नहीं सकते |
     जिस संस्कृति की कोख से हमने जन्म लिया है वो सनातन है, विज्ञान को परम्पराओं का जामा इसलिए पहनाया गया है ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें |
     भगवान शिव को विश्वास का प्रतीक माना गया है क्योंकि उनका अपना चरित्र अनेक विरोधाभासों से भरा हुआ है जैसे शिव का अर्थ है जो शुभकर व कल्याणकारी हो, जबकि शिव जी का अपना व्यक्तित्व इससे जरा भी मेल नहीं खाता, क्योंकि वे अपने शरीर में इत्र के स्थान पर चिता की राख मलते हैं तथा गले में फूल-मालाओं के स्थान पर विषैले सर्पों को धारण करते हैं | वे अकेले ही ऐसे देवता हैं जो लिंग के रूप में पूजे जाते हैं | सावन में शिवलिंग पर दूध चढ़ाने का विशेष महत्व माना गया है | इसीलिए शिव भक्त सावन के महीने में शिव जी को प्रसन्न करने के लिए उन पर दूध की धार अर्पित करते हैं |
     पुराणों में भी कहा गया है कि इससे पाप क्षीण होते हैं | लेकिन श्रावण मास में शिवलिंग पर दूध चढ़ाने का सिर्फ धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक महत्व भी है | श्रावण मास के महीने में दूध का सेवन नहीं करना चाहिए | शिव ऐसे देव हैं जो दूसरों के कल्याण के लिए हलाहल ( जहर) भी पी सकते हैं | इसीलिए सावन में शिव को दूध अर्पित करने की प्रथा बनाई गई है क्योंकि सावन के महीने में गाय या भैस घास के साथ कई ऐसे कीड़े-मकोड़ो को भी खा जाती है | जो दूध को स्वास्थ्य के लिए गुणकारी के बजाय हानिकारक बना देती है | इसीलिए सावन मास में दूध का सेवन न करते हुए उसे शिव को अर्पित करने का विधान बनाया गया है |
     आयुर्वेद कहता है कि वात-पित्त-कफ इनके असंतुलन से बीमारियाँ होती हैं और श्रावण (सावन) के महीने में वात की बीमारियाँ सबसे ज्यादा होती हैं | श्रावण के महीने में ऋतू परिवर्तन के कारण शरीर मे वात बढ़ता है | इस वात को कम करने के लिए क्या करना पड़ता है ? ऐसी चीज़ें नहीं खानी चाहिएं जिनसे वात बढे इसलिए पत्ते वाली सब्जियां नहीं खानी चाहिएं और उस समय पशु क्या खाते हैं ? सब घास और पत्तियां ही तो खाते हैं | इस कारण उनका दूध भी वात को बढाता है | इसलिए आयुर्वेद कहता है कि श्रावण के महीने में दूध नहीं पीना चाहिए | इसलिए श्रावण मास में जब हर जगह शिव पर दूध चढ़ता था तो लोग समझ जाया करते थे कि इस महीने मे दूध विष के सामान है, स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है, इस समय दूध पिएंगे तो वाइरल इन्फेक्शन से बरसात की बीमारियाँ फैलेंगी और वो दूध नहीं पिया करते थे |
     बरसात में भी बहुत सारी चीज़ें होती हैं लेकिन हम उनको दीवाली के बाद अन्नकूट में कृष्ण भोग लगाने के बाद ही खाते थे (क्यूंकि तब वर्षा ऋतू समाप्त हो चुकी होती थी) | एलोपैथ कहता है कि गाजर मे विटामिन ए होता है आयरन होता है लेकिन आयुर्वेद कहता है कि शिव रात्रि के बाद गाजर नहीं खाना चाहिए इस ऋतू में खाया गाजर पित्त को बढाता है | तो शिवलिंग पर दूध चढाना समझदारी है।