मुजफरनगर दंगे : जाट भाइयों सचिन और गौरव याद है या भूल गए
सचिन और गौरव वो दो भाई थे जिन्होंने अपनी बहन की इज्जत बचाने के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। शाहनवाज नाम का एक गुंडा रोज उनकी बहन को स्कूल आते जाते छेड़ता था। ये पश्चिमी उत्तर प्रदेश की हिन्दू लड़कियों के लिए आम बात थी। सचिन और गौरव की बहन भी यही भुगत रही थी। वो पढाई बंद हो जाने के डर से ये अपने घर वालो से भी छुपा रही थी। लेकिन एक दिन तो हद हो गई शाहनवाज ने सरे आम उसका हाथ पकड़ लिया और खिंच कर ले जाने लगा। लेकिन भीड़ के इकट्ठा होने के कारण वो भाग निकला। जैसे ही ये बात सचिन और गौरव को पता चली उनका खून खोलने लगा, वो दोनों शाहनवाज और उसके साथियों को सबक सिखाने की सोचने लगे। वो सीधा उसके गांव कवाल गए और उसको धमकाने लगे। देखते ही देखते हाथा पाई होने लगी, शाहनवाज ने शोर मचा कर अपने पुरे परिवार को इकट्ठा कर लिया। सब लोग दोनों भाइयो पर टूट पड़े। जब दोनों भाई अधमरे हो कर जमीन पर गिर पड़े तो मुसलमानों ने बड़े बड़े पहाड़ी पत्थर उनके चेहरो पर गिरा दिए। जब इसकी रिपोर्ट लिखाने सचिन और गौरव के परिवार वाले थाने पहुंचे तो आजम खान के फ़ोन से उल्टा इन्ही के परिवार के 5 लोगों को शांति भाग करने के आरोप मैं जेल में डाल दिया।
जाट महापंचायत से लौट रहे लोगों पर अंधाधुंध गोलियां चलाई गयीं। जाट महापंचायत को भी गैर कानूनी करार दे दिया। वहीँ दूसरी और बीएसपी के सांसद क़ादिर राणा ने मुस्लिमो की पंचायत बुलाई जिसे समाजवादी सरकार ने होने दिया। इसे बीएसपी एसपी आरएलडी और कांग्रेस के मुस्लिम नेताओं ने संबोधित किया। और धमकी दी की अगर सचिन और गौरव के परिवार को छोड़ा गया या किसी भी मुस्लिम की गिरफ़्तारी की तो दंगा होगा। अखिलेश की समाजवादी सरकार ने वोट बैंक के आगे घुटने टेक दिए।
उधर जाटों के समर्थन मैं बाकी हिन्दू जातियां उतर आयी जिनमे पंडित, ठाकुर, गड़रिया, नाई आदि सभी थे, जब जाट इस जरूरत की घडी मैं अपने तथाकथित मसीहा अजित सिंह को ढूंढ रहे थे उस समय इस डर से की मुस्लिम वोट नाराज हो जाएगा अजित सिंह दिल्ली भाग गया।
बाकि पार्टियों के जाट नेताओं का भी यही हाल था। इस समय जाटों की मदद के लिए जो नेता आये वो थे बीजेपी के संजीव बालियान (जाट) हुकम सिंह (गुर्जर) संगीत सोम, सुरेश राणा (दोनों ठाकुर) प्रमुख थे। सरकार के विरोद्ध के बावजूद पंचायत हुई और बड़ी पंचायत हुई। पंचायत के बाद जब सब लोग अपने गाँवो की और जाने लगे तो मुस्लिम इलाकों मैं पंचायत मैं भाग लेने आये लोगो पर हमला शुरू हो गया। जिससे ऐसी आग लगी की पूरा पश्चिमी उत्तर प्रदेश जलने लगा।
आज जब कुछ युवाओं को देखता हूँ वो भी खासकर जाटों को जो ये कहते हैं की अखिलेश हिन्दू युवाओं का नेता हैं और प्रदेश बदलेगा तो मुझे सचिन और गौरव की याद आ जाती है। क्या अगर वो आज जिन्दा होते तो वो भी यही कहते। क्या वो भी अखिलेश का समर्थन करते? आप को क्या लगता है ?
परम पिता परमेश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे | ऊँ शान्ति...ऊँ शान्ति..ऊँ शान्ति
सचिन और गौरव वो दो भाई थे जिन्होंने अपनी बहन की इज्जत बचाने के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। शाहनवाज नाम का एक गुंडा रोज उनकी बहन को स्कूल आते जाते छेड़ता था। ये पश्चिमी उत्तर प्रदेश की हिन्दू लड़कियों के लिए आम बात थी। सचिन और गौरव की बहन भी यही भुगत रही थी। वो पढाई बंद हो जाने के डर से ये अपने घर वालो से भी छुपा रही थी। लेकिन एक दिन तो हद हो गई शाहनवाज ने सरे आम उसका हाथ पकड़ लिया और खिंच कर ले जाने लगा। लेकिन भीड़ के इकट्ठा होने के कारण वो भाग निकला। जैसे ही ये बात सचिन और गौरव को पता चली उनका खून खोलने लगा, वो दोनों शाहनवाज और उसके साथियों को सबक सिखाने की सोचने लगे। वो सीधा उसके गांव कवाल गए और उसको धमकाने लगे। देखते ही देखते हाथा पाई होने लगी, शाहनवाज ने शोर मचा कर अपने पुरे परिवार को इकट्ठा कर लिया। सब लोग दोनों भाइयो पर टूट पड़े। जब दोनों भाई अधमरे हो कर जमीन पर गिर पड़े तो मुसलमानों ने बड़े बड़े पहाड़ी पत्थर उनके चेहरो पर गिरा दिए। जब इसकी रिपोर्ट लिखाने सचिन और गौरव के परिवार वाले थाने पहुंचे तो आजम खान के फ़ोन से उल्टा इन्ही के परिवार के 5 लोगों को शांति भाग करने के आरोप मैं जेल में डाल दिया।
जाट महापंचायत से लौट रहे लोगों पर अंधाधुंध गोलियां चलाई गयीं। जाट महापंचायत को भी गैर कानूनी करार दे दिया। वहीँ दूसरी और बीएसपी के सांसद क़ादिर राणा ने मुस्लिमो की पंचायत बुलाई जिसे समाजवादी सरकार ने होने दिया। इसे बीएसपी एसपी आरएलडी और कांग्रेस के मुस्लिम नेताओं ने संबोधित किया। और धमकी दी की अगर सचिन और गौरव के परिवार को छोड़ा गया या किसी भी मुस्लिम की गिरफ़्तारी की तो दंगा होगा। अखिलेश की समाजवादी सरकार ने वोट बैंक के आगे घुटने टेक दिए।
उधर जाटों के समर्थन मैं बाकी हिन्दू जातियां उतर आयी जिनमे पंडित, ठाकुर, गड़रिया, नाई आदि सभी थे, जब जाट इस जरूरत की घडी मैं अपने तथाकथित मसीहा अजित सिंह को ढूंढ रहे थे उस समय इस डर से की मुस्लिम वोट नाराज हो जाएगा अजित सिंह दिल्ली भाग गया।
बाकि पार्टियों के जाट नेताओं का भी यही हाल था। इस समय जाटों की मदद के लिए जो नेता आये वो थे बीजेपी के संजीव बालियान (जाट) हुकम सिंह (गुर्जर) संगीत सोम, सुरेश राणा (दोनों ठाकुर) प्रमुख थे। सरकार के विरोद्ध के बावजूद पंचायत हुई और बड़ी पंचायत हुई। पंचायत के बाद जब सब लोग अपने गाँवो की और जाने लगे तो मुस्लिम इलाकों मैं पंचायत मैं भाग लेने आये लोगो पर हमला शुरू हो गया। जिससे ऐसी आग लगी की पूरा पश्चिमी उत्तर प्रदेश जलने लगा।
आज जब कुछ युवाओं को देखता हूँ वो भी खासकर जाटों को जो ये कहते हैं की अखिलेश हिन्दू युवाओं का नेता हैं और प्रदेश बदलेगा तो मुझे सचिन और गौरव की याद आ जाती है। क्या अगर वो आज जिन्दा होते तो वो भी यही कहते। क्या वो भी अखिलेश का समर्थन करते? आप को क्या लगता है ?
परम पिता परमेश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे | ऊँ शान्ति...ऊँ शान्ति..ऊँ शान्ति
(Jitendra Pratap Singh)