किस काम की डिग्री जब भारत में सॉफ्टवेर इंजिनियर से अधिक वेतन बाल काटने वाले का
Headline News
Loading...

Ads Area

किस काम की डिग्री जब भारत में सॉफ्टवेर इंजिनियर से अधिक वेतन बाल काटने वाले का

Image result for indian barber so costly  ”रोहन को उसके माता पिता ने एक प्राइवेट इंजीनियरिंग संस्थान से बी.टेक कराया लगभग 10 लाख रुपए का खर्चा आया कोर्स पूरा करने में, पहले तो रोहन के लिए प्लेसमेंट की प्रॉब्लम और अगर ले दे कर कहीं जॉब लग भी गयी तो वो 20 हजार से अधिक की नही. एक साल दिल्ली में 18 हज़ार रुपए प्रति महिना की नौकरी करने के बाद परेशान रोहन ने एम् टेक करने की सोची लगभग 4 लाख रुपए का खर्चा एम् टेक करने में आया.अब रोहन एक प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर 30 हज़ार रुपए प्रति महिना का नौकरी कर रहा है, वैसे शिक्षा अनमोल है लेकिन देखा जाये तो उसे अपनी शिक्षा पर हुए खर्च हुई धनराशी के बराबर कमाई करने में 4-5 वर्ष का समय लगेगा.”
सच्चा किस्सा
    कोहराम की टीम मेम्बर को अपना घर में कंस्ट्रक्शन कराने के लिए एक दिहाड़ी मजदूर की आवश्यकता थी, टीम मेम्बर पहुँच गये मजदूरों की टोली में जहाँ मजदूर ने अपनी दिहाड़ी 350 रुपए बताई, मेम्बर ने कहा 300 रुपए ले लेना इस पर मजदूर का कहना था की ”साब हम तो इतने में ही काम करेंगे अगर सस्ता चाहिए तो कोई पढ़ा लिखा पकड़ लो “
    आपके माता-पिता आपसे उम्मीद करते हैं कि आप बड़े होकर डॉक्टर, इंजीनियर, वकील या कोई ऐसी ही प्रतिष्ठित नौकरी करेंगे. ज़्यादातर मौकों पर ऐसी नौकरियों से उनका तात्पर्य अच्छे वेतन से होता है.
    लेकिन मान लीजिए आपका सपना कारपेंटर बनने का हो या फिर क्रेन ऑपरेटर बनने का तो परेशान मत होइए, इन कामों के जरिए भी आप आकर्षक वेतन कमा सकते हैं. कई बार प्रतिष्ठित नौकरियों से भी ज़्यादा.
   हमने इंटरनेट साइट क्योरा से यही जानने की कोशिश की, हमने साइट से पूछा कि वो कौन कौन सी नौकरियां हैं जिसके बारे में लोग सोचते नहीं कि उसमें इतना भी पैसा होगा.
    भारत में हेयर ड्रेसर की कमाई सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री के कर्मचारियों से ज्यादा होता है. हाल ही में भारतीय सैलून में कृतिका गोसुकुंडा ने कुछ हेयर स्टाइलिस्ट से उनकी कमाई के बारे में पूछा.
    कृतिका ने कहा, “जूनियर हेयर ड्रेसर के तौर पर सैलून में काम करने वाले को हर महीने 90 हजार से एक लाख रुपये तक की कमाई हो जाती है. ख़ास दिन हो तो एक दिन में ये 30 हज़ार रुपये तक कमा लेते हैं.”
   कृतिका ने कहा, “हम सोचते थे कि सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री के कर्मचारियों का वेतन सबसे ज़्यादा होता है, ये धारणा उस दिन टूट गई.”
वेतन को लेकर पुरानी रिपोर्ट क्या कहती है
   एक इलेक्ट्रिशन की शुरुआती सैलरी 11,300 रुपए प्रति माह है, जबकि एक डेस्कटॉप इंजिनियर की सैलरी इससे महज 3,500 रुपए ज्यादा। अब दोनों की काबिलियत की तुलना कर ली जाए। इलेक्ट्रिशन एक अकुशल कर्मचारी है और वह महज बारहवीं पास है जबकि डेस्कटॉप इंजिनियर इंजिनियरिंग में ग्रैजुएट है।
   हैरत की बात तो यह है कि एक खास अवधि में दोनों की सैलरी में इजाफे का अंतर भी लगभग बराबर ही है- इलेक्ट्रिशन की 5 साल में लगभग 19,000 रुपए और डेस्कटॉप इंजिनियर की 8 साल में 30,000 रुपए। यानी, 8 साल में इलेक्ट्रिशन भी 26,000 हजार रुपए प्रति माह कमा लेगा।
   वेतन के अंतर में इतनी कमी इसलिए है, क्योंकि एक ओर जहां फिटर्स, वेल्डर्स, इलेक्ट्रिशंस और प्लंबर्स की भारी कमी है। वहीं, आईटी सेक्टर में अपनी किस्मत आजमाने वाले इंजिनियरों की एक बड़ी फौज है।
   श्रम बाजार के व्यापक आकलन के तहत टीमलीज के ताजे और शुरुआती आंकड़ों में इस तरह के परिणाम सामने आए हैं। टीमलीज सर्विसेज की को-फाउंडर और सीनियर वाइस प्रेसिडेंट रितुपर्णा चक्रबर्ती कहती हैं, ‘पिछले 6-7 सालों में वेतन ढांचे के अध्ययन के दौरान हमने पाया कि इलेक्ट्रिशन की तरह प्लबंर्स और वेल्डर्स जैसे दूसरे कामगारों के वेतन में सिर्फ इजाफा ही हुआ है। दूसरी ओर इस अवधि में इंजिनियर्स और खासकर आईटी इंजिनियर्स का शुरुआती वेतन कमोबेश बराबर ही रहा है।’ संयोग से टेक सेक्टर की रैंकिंग में डेस्कटॉप इंजिनियर सबसे निचले पायदान पर आता है। 
   उनका कहना है कि एक दशक पहले जब आईटी सेक्टर सबाब पर था, तब इंजिनियर्स की मांग बहुत ज्यादा थी। लेकिन, अब मांग वहीं है, करीब 4 लाख के आसपास। लेकिन, आईटी सेक्टर में जाने की जद्दोजहद में जुटे इंजिनियरों की तादाद बढ़कर 15 लाख हो गई है। इसका परिणाम बेमेलपन के रूप में आया है।
Image result for software engineer no job no income   इंडियन स्टाफिंग फेडरेशन की भी अध्यक्ष चक्रबर्ती के मुताबिक, ‘इंडस्ट्री को जहां 10 इलेक्ट्रिशंस की जरूरत है, वहां हमें 2 को खोजने में भी मशक्कत करनी पड़ती है। हाल ही में एक विशाल इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनी ने हमसे कहा कि अगर हम उन्हें 1 लाख वेल्डर्स, फिटर्स, पल्बंर्स और इलेक्ट्रिशंस मुहैया करवा सकें, तो उन्हें इन सबको को काम पर रखने में खुशी होगी। तो कामगारों की ऐसी मांग है।’
   दरअसल, इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में तेजी की वजह से कामगारों की जरूरत बढ़ी है। उदाहरण के तौर पर टाटा स्टील अभी ओड़िशा के कलिंगनगर में 60 लाख टन हरित क्षेत्र समेकित स्टील परियोजना स्थापित कर रहा है। कंपनी के एक आधिकारिक प्रवक्ता के मुताबिक, ‘स्टील प्लांट के निर्माण में इलेक्ट्रिशन, वेल्डर्स, फिटर्स जैसे कौशल की बड़ी तादाद में जरूरत है। भले ही इनमें कुछ की जरूरत बहुत कम समय के लिए ही हो।’
   गोदरेज ऐंड बॉयस में इंडस्ट्रियल रिलेशंस के सीनियर वाइस प्रेजिडेंट जी आर दस्तूर मानते हैं कि शहरी और अर्ध-शहरी इलाकों में सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाएं युवाओं को पेशेवर कौशल हासिल करने से रोकते हैं। उनकी कहना है कि औद्योगिक समूहों को सरकार और स्वयंसेवी संगठनों के साथ मिलकर ऐसे कौशल हासिल करने के प्रति युवाओं को बढ़ावा देना होगा। साथ ही उनके कौशल के मुताबिक उन्हें और ज्यादा सम्मान और महत्व देना होगा।
   रैंडस्टैड इंडिया के सीईओ मूर्ति के उप्पालुरी का कहना है, ‘समाज के हरेक वर्ग में शिक्षा का स्तर बढ़ने से अपेक्षाएं बढ़ी हैं। औसतन, ऐसे पेशे में योग्यता ज्यादातर अनुभव आधारित होता है, क्योंकि कॉलेजों से तैयार प्रतिभाएं नहीं मिलती हैं।
   व्यावसायिक शिक्षा संस्थानों से निकले हुए ग्रैजुएट कैंडिडेट ऑटो निर्माण जैसी कंपनियों में काम करने पसंद करते हैं या खाड़ी के देशों का रुख कर लेते हैं।’ उनका कहना है कि मांग और मुद्रास्फीति में वृद्धि से कामगारों के वेतन में सालाना औसतन 15 से 20 फीसदी का इजाफा होता है।

Post a Comment

0 Comments