जिसे कभी बंजर ज़मीन देकर ताना दिया जाता था, आज वही कमा रहीं लाखो
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जिसे कभी बंजर ज़मीन देकर ताना दिया जाता था, आज वही कमा रहीं लाखो

   कभी जिसे केवल 1.25 एकड़ बंजर ज़मीन देकर यह ताना दिया गया था कि उनके देवरों की कमाई से ही उनके बच्चे पल रहे है, आज वही संतोष देवी, उसी 1.25 एकड़ ज़मीन से सालाना 25 लाख रूपये कमा रहीं हैं।
    यह कहानी है राजस्थान के सीकर जिले के बेरी गाँव में शेखावती फार्म चलाने वाली, कृषि वैज्ञानिक की उपाधि से सम्मानित, संतोष देवी खेदड़ और उनके पति राम करण खेदड़ की! 
    गाँव वापस आते ही संतोष ने खेती के सारे गुर सीख लिए। 12 साल की होने तक संतोष को वह सब कुछ आता था, जो एक किसान को आना चाहिए। 
     साल 1990 में, गाँव की रीत के मुताबिक पंद्रह साल की संतोष का विवाह राम करण से, और उनकी छोटी बहन की शादी राम करण के छोटे भाई से करा दी गयी। 
     रामकरण के संयुक्त परिवार में उनके बाकी दो भाई अच्छी नौकरियों में थे, इसलिए परिवार के 5 एकड़ खेत का काम वे और संतोष सँभालने लगे। पर इस खेत को देख कर संतोष देवी हैरान थी। रसायन के बार-बार इस्तेमाल से इसकी मिट्टी बिलकुल ख़राब हो चुकी थी। खेत में न ट्यूबवेल था, न ही कोई कुंआ, जहाँ से पौधों को पानी दिया जा सके। कुल मिलाकर इस खेत में जितनी लागत लग रही थी, उतनी भी कमाई नहीं हो रही थी।
    2005 में राम करण को होम गार्ड की नौकरी मिल गयी पर इसमें भी उन्हें तनख्वाह में सिर्फ़ 3000 रूपये ही मिलते, जिससे गुज़ारा हो पाना मुश्किल था। ऐसे में 2008 में इनके संयुक्त परिवार का बंटवारा हो गया और राम करण और संतोष के पास अब केवल 1.25 एकड़ ज़मीन ही रह गयी।
    बस, इसके बाद संतोष देवी ने ठान लिया कि अब वे इसी खेत से इतना तो कमा कर दिखाएंगी कि उनके बच्चों को किसी चीज़ की कमी न हो।
     राम करण जहाँ होम गार्ड की नौकरी करते थे, वहां किसी ने उन्हें बहुत पहले अनार लगाने का सुझाव दिया था। बंटवारे के बाद संतोष को यह बात याद आई और उन्होंने इस सुझाव पर अमल करने का फ़ैसला किया।
सबसे पहले संतोष देवी ने अपने खेत से सारे खरपतवार हटाये और खुद जैविक खाद बना कर खेत की मिट्टी में डाला। उन्होंने अपनी एकलौती भैंस भी बेच दी और उन पैसों से खेत में ट्यूबवेल लगवाया। बाकी पैसों से इन दोनों ने 220 अनार के पौध खरीदे और उन्हें अपने खेत में बोया।
    संतोष देवी के मायके में जैविक खेती होती थी, इसलिए जो-जो उन्होंने वहां सीखा था, उन सभी जानकारियों का वे यहाँ इस्तेमाल करने लगी।
    साथ ही आस-पास के किसानों से भी सलाह लेकर, उन्होंने अपने खेत में नए-नए प्रयोग किये। राम करण भी अपनी ड्यूटी ख़त्म करके खेत में काम करते, और उनके तीनों बच्चे भी स्कूल से वापस आकर अपने माता-पिता का हाथ बंटाते।
   उनकी 3 साल की कड़ी मेहनत का ही फल था कि साल 2011 में उन्हें 3 लाख रूपये का मुनाफा हुआ! इन 3 सालों में किये उनके जो भी प्रयोग सफ़ल हुए थे, संतोष देवी और राम करण ने आगे उन पर और ज़ोर दिया।
कट्टिंग तकनीक – संतोष देवी का मानना है कि जैसे ही फुटान होती है, वैसे ही नयी आ रहीं शाखाओं को केवल 3 इंच छोड़कर बाकी काट देना चाहिए। ऐसी छंटाई करने से सारे पोषक तत्व नयी शाखाओं को न जाकर, फलों को मिलते हैं, जिससे उनकी बढ़त अच्छी होती है। उनके खेत का एक-एक अनार लगभग 700-800 ग्राम का होता है, जिसे देखने के लिए लोगों का तांता लगा रहता हैं।
ड्रिप प्रणाली – ड्रिप प्रणाली का इस्तेमाल करने से पानी की बचत तो होती ही है, साथ ही मिट्टी में नमी बनी रहती है। इसे और असरदार बनाने के लिए संतोष देवी हर पेड़ के आस-पास 3 फीट तक का घेरा बना लेती हैं, जिससे जड़ों के आस-पास की मिट्टी में हमेशा नमी बनी रहे।
जैविक खाद – यह दंपत्ति अपने खेत में ही जैविक खाद बनाता है, जिसके लिए उन्होंने दो देसी गाय रखी है। इन गायों के गोबर तथा गौमूत्र का इस्तेमाल कर, ये बढ़िया जैविक खाद बनाते हैं। हर 6 महीने में पचास किलो तक की खाद एक एक पेड़ को दी जाती है। साथ ही नीम, धतूरा, गौमूत्र, हल्दी आदि मिलाकर एक कीटनाशक भी बनाया जाता है, जो बहुत कारगर है।
     संतोष देवी ने खेत में ही एक पाँच फूट गहरा गढ्ढा खोदा है, जिसमें वे सूखी पत्तियां, खरपतवार जैसे खेत के कचरे को डालती जाती हैं। इस पर नीम के पत्ते, जैविक खाद, पानी तथा डीकम्पोसर डालकर भी बहुत अच्छी खाद तैयार होती है।
   इस तरह मिट्टी को लगातार जैविक खाद मिलते रहने से, अब यह मिट्टी मुलायम और नर्म हो गयी है और केचुए भी अब यहाँ रहने लगे हैं।
आडू के पेड़ – संतोष देवी ने अपने खेतों के चारों ओर आडू के पेड़ लगाए हैं। उनका कहना है कि आडू के पेड़ की जड़ों में प्राकृतिक कैल्शियम होता है, जो आस-पास की मिट्टी की कैल्शियम की ज़रूरत को भी पूरा करता है। साथ ही इन पेड़ों की छाया, बाकी पौधों को अत्यधिक धूप या अत्यधिक ठंड से भी बचाती हैं।
मार्केटिंग – संतोष देवी का दावा है कि जैविक तरीके से उगाये गए फल व सब्जियां, न सिर्फ स्वास्थ्य के लिए अच्छे होते हैं, बल्कि इनका स्वाद भी रसायन से उगाये जाने वाले फलों की अपेक्षा बहुत अच्छा होता है। इसलिए जब इनके बाग़ में पहले फल आये, तो राम करण उन्हें चखाने के लिए सभी के पास ले गए। सीकर में कई साल तक होम गार्ड रहने की वजह से उनकी जान-पहचान वहां के सभी अधिकारीयों, दुकानदार तथा अन्य लोगों से भी थी। जब इन लोगों ने राम करण के दिए अनार चखे, तो वे इसके स्वाद और गुणवत्ता के कायल हो गए और अब हर साल ये सभी यहीं से अनार खरीदते हैं।
     आप एक बार हमारे खेत का फल चख लो, तो आप फिर कभी बाज़ार से फल नहीं खरीदोगे। हमारा तो खेत ही हमारा बाज़ार बन गया है, “ राम करण ने हँसते हुए कहा।
मुनाफ़ा – संतोष देवी और राम करण के खेत में अगस्त से सितम्बर के बीच पहली फ़सल होती है, जिसमें हर पेड़ पर करीब 50 किलो अनार होते हैं। दूसरी फ़सल में नवम्बर और दिसंबर के बीच हर पेड़ पर 30-40 किलो फल आते हैं। और इन सबसे कुल 10-15 लाख रूपये का मुनाफ़ा होता है।
    खेदड़ परिवार की सफ़लता को देखते हुए, आस-पास के किसान भी बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने भी अनार लगाना चाहा। पर ज़्यादातर किसानों को इसमें सफ़लता न मिलने से, वे संतोष देवी के पास मदद मांगने आते। संतोष देवी उन्हें अपने अनुभवों से सीखे हुए सारे उपाय भी बताती, पर फिर भी यह काम नहीं करता। ऐसे में खेदड़ दंपत्ति को लगा कि शायद अनार के जो पौध वे लेकर आये थे, उनकी गुणवत्ता अब मिलने वाले पौध की गुणवत्ता से बेहतर होगी, इसलिए वे सफल हो पाए। अब यह जोड़ा दूसरे किसानों की मदद करने के लिए, अपने पेड़ों की कलम काटकर पौध तैयार करने लगा। जो भी एक बार यह पौध ले जाता, वह दुबारा ज़रूर आता। और इस तरह 2013 में शुरुआत हुई ‘शेखावाती कृषि फार्म एवं नर्सरी उद्यान रीसर्च सेंटर’ की!
संतोष देवी ने बताया कि इस साल उन्होंने करीब 15000 पौध बेचे हैं, जिससे उन्हें 10-15 लाख की अतिरिक्त आय हुई है।
     2016 में, संतोष देवी को खेती में नवीन तकनीकें अपनाने के लिए ‘कृषि मंत्र पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। इस सम्मान के साथ उन्हें एक लाख रूपये की पुरस्कार राशि भी मिली। किसानों की मदद के लिए हमेशा से तत्पर रहे इस परिवार ने, इन पैसों का इस्तेमाल खेत में एक विश्राम-गृह बनाने के लिए किया, जहाँ देश भर के किसान मुफ़्त में रह सकते हैं और उनकी तकनीक सीख सकते हैं।
    “हर रोज़, 15-20 किसान हमारे खेत में सीखने के लिए आते हैं। पर उनके लिए यहाँ आराम करने की कोई जगह नहीं थी। वे हमारी तकनीक सीखने के लिए, हमारे खेत पर कई दिनों तक चिलचिलाती धूप या ठंडी रातों में रहते हैं। हमारे मेहमानों को कोई तकलीफ न हो, ये हमारी जिम्मेदारी है। इसलिए हमने यह विश्राम-गृह बनवाया,”संतोष देवी कहती हैं।
    आर्थिक रूप से इतनी सशक्त होने के बावजूद संतोष देवी ने अभी तक कोई नौकर-चाकर नहीं रखे हैं। वे हर दिन इन 15-20 मेहमानों के लिए खाना बनाती है और साथ ही खेत पर भी उन्हें सिखाती हैं।
    “उनके लिए खाना बनाना और उनकी मदद करना तो मेरा सौभाग्य है। हम तो कभी सोच भी नहीं सकते थे, कि कभी खेती के लिए हमें पुरस्कार मिलेगा, या कृषि मंत्री खुद हमारे खेत का दौरा करेंगे। सिर्फ 1.25 एकड़ के एक छोटे से खेत के साथ, यह एक सपने जैसा था। यह सब भगवान की कृपा और आप जैसे शुभचिंतकों का प्यार है, जिसकी वजह से हम यहाँ तक पहुंचे हैं। हम चाहते है कि हम सभी किसानों के साथ अपना अनुभव बांटे। आप सब लोग बेझिझक यहाँ आये, हमसे जितना होगा हम आपको सिखायेंगे,“

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