पश्चिम रेलवे ने पिछले तीन सालों में चूहों पर 1.52 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। हालांकि इतनी बड़ी राशि खर्च किये जाने के बाद भी रेलवे को समस्या से निजात नहीं मिल सकी है।
दरअसल मुंबई में पटरियों पर दौड़ रही ट्रेनों के पीछे बड़ा जटिल तंत्र है। एक सिग्नल प्रणाली को चलाने के लिए हजारों बारीक तारें लगी होती हैं। इनमें से यदि एक भी कट हो जाए, तो सिग्नल ठप, मतलब मुंबई ठप हो जाएगी। इस तरह ज्यादातर तारें चूहे काट देते हैं। इन चूहों का खात्मा करने के लिए रेलवे को रोडेंट कंट्रोल करना पड़ता है।
इसके लिए तीन सालों में पश्चिम रेलवे ने रोडेंट कंट्रोल के लिए 1,52,41,689 रुपये खर्च किए हैं। लेकिन स्थिति यह है कि इतनी बड़ी राशि खर्च किये जाने के बाद भी रेलवे तीन सालों में केवल 5,457 चूहों को ठिकाने लगा सकी है। यदि इसे प्रत्येक दिन के हिसाब से बांटे, तो रोजाना औसतन 14 हजार रुपये खर्च हो रहे हैं। इतने रुपये खर्च करने के बाद रोजाना औसतन 5 चूहे मरे हैं।
पश्चिम रेलवे से यह जानकारी आरटीआई से मांगी गई थी। जवाब में रेलवे ने बताया कि ट्रेनों के कोच और यार्ड में रोडेंट कंट्रोल का काम हुआ है। यह काम करने के लिए ठेकेदारों की नियुक्ति होती है।
रेलवे के एक अधिकारी की माने तो यहां सवाल करोड़ों रुपये खर्च करके चूहे मारने का नहीं है। यह खर्च रेलवे को नुकसान से बचाने के लिए हो रहा है। यदि रोडेंट कंट्रोल नहीं होगा, तो चूहे यात्रियों का सामान काट देंगे। अधिकारी ने बताया कि यदि ट्रेनों में खाने-पीने का सामान नहीं बिखेरा जाएगा, सफाई रहेगी, तो चूहों पर नियंत्रण करने में आसानी होगी।