यहां पत्नी संग विराजते हैं भगवान हनुमान, उनके पुत्र का भी है एक मंदिर

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भारत का अनोखा मंदिरजाने देश के किस हिस्से में है हनुमान जी के बेटे का मंदिर
    क्या आपको पता है हनुमान जी का एक बेटा भी है ? अब आप कहेंगे कि हनुमान जी तो ब्रम्हचारी थे फिर उनका बेटा कैसा ? तो जान लीजिए कि पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान हनुमान जी के बेटे का नाम मकरध्वज है.
    मकरध्वज हनुमान मंदिर पिता-पुत्र के आनंदपूर्ण मिलन का सर्वप्रथम मंदिर है. यह देवभूमि द्वारका जिले के अंतर्गत बेट द्वारका या शंखोधर द्वीप पर स्थित है. मंदिर के गर्भग्रह में प्रवेश करते ही आप पिता और पुत्र के दर्शन कर सकते हैं. 
   हनुमान जी आपके दाहिनी ओर और मकरध्वज बाएं हाथ की ओर है. मकरध्वज का पूर्ण रूप व जांघ के ऊपर हनुमानजी अर्ध रूप ही दिखता है. मकरध्वज एक राक्षस को सहज रूप से अपने पैरों के नीचे दवाए हुए एवं हनुमान आनंद मुद्रा मे प्रतीत होते हैं. इन दोनों के हाथ में कोई गदा नहीं है या कोई अन्य हथियार नहीं है.
गुजरात में खुशी तथा प्रसन्नता के भाव को व्यक्त करना दांडी कहा जाता है, अतः मंदिर का नाम हनुमान दांडी संकीर्तन मंदिर के नाम से जाना जाता है. मंदिर के महंत के अनुसार भगवान हनुमान हर वर्ष चावल के एक दाने के बराबर पृथ्वी को नीचे जा रहे हैं और हनुमंत के इस स्थान को छोड़ कर जाते ही इस कलयुग का अंत हो जाएगा.
रामायण में मकरध्वज की कहानी:
    भगवान हनुमान जन्म से ही ब्रह्मचारी थे,तब उनके बेटे मकरध्वज का ये दुर्लभ मंदिर हनुमान दांडी मंदिर कैसे और कहाँ से आया? जब पवन पुत्र ने पूरे पूंछ पर आग लगाकर पूरे लंका को जलाने के बाद समुद्र के पानी में डुबकी लगाई, तो उसकी पसीना की एक बूंद एक शक्तिशाली मछली के मुंह में गिर गई। इस प्रकार यह गर्भवती ताकतवर मछली अहिरावण के लोगों द्वारा पकड़ी गई, जो लंकेश रावण के कदम भाई थे, और पाताल लोक के राजा थे. तब मछली के पेट से मकरध्वज मिले। अहिरावण ने मकरध्वज की ताकत और बुद्धि को देखते हुए उन्हें अपने राज्य पाताल लोक के द्वार की रक्षा करने का काम सौंप दिया. मकरध्वज का नाम प्राणी मकर से लिया गया है और इसे मकर है, कभी-कभी मगर-धाज के रूप में भी लिखा जाता है – जिसे मगर (सरीसृप) और भाग वानारा के रूप में दर्शाया गया है. रामायण की कहानी के अनुसार, जब अहिरावण ने भगवान श्री राम और लक्ष्मण को पाताल लोक की ओर ले गया, हनुमान भी उन्हें बचाने पाताल पुरी पहुँचे। पाताल-पुरी के द्वार पर, भगवान हनुमान को एक प्राणी ने चुनौती दी थी, जो वानार और सरीसृप (मकरा) यानी मकरध्वज था.
जहां किया जाता है भगवान हनुमान जी के विवाहित होने का दावा, जानिए क्या है सच…
यहां पत्नी संग विराजते हैं भगवान हनुमान
     भगवान हनुमान हिंदू धर्म के मुख्य देवताओं में से एक हैं. लगभग हम सभी को बचपन से बताया जाता है और कई बाद पढ़ते भी आए हैं कि भगवान हनुमान अविवाहित और ब्रह्मचारी हैं. लेकिन पुराणों में इस बात का भी उल्लेख है कि उनके एक पुत्र भी थे जिनका नाम मकरध्वज था. कहा जाता है कि हनुमान जी के पसीने का एक बूंद से मकरध्वज का जन्म हुआ था. लेकिन, भारत में एक जगह ऐसी भी है, जहां पर हनुमान को विवाहित माना जाता है. खम्‍मम में एक मंदिर में उनकी पत्नी के साथ मूर्ति है.
कहां है भगवान हनुमान और सुवर्चला का मंदिर
     बता दें कि तेलंगाना के खम्‍मम जिले में हनुमान जी और उनकी पत्‍नी सुर्वचला की पूजा होती है. यहां पर बना यह पुराना मंदिर सालों से लोगों के आकर्षण का केंद्र रहा है. शायद आप न जानते हों कि, खम्‍मम जिले के स्‍थानीय लोग ज्‍येष्‍ठ शुद्ध दशमी को हनुमान जी का विवाह मनाया करते हैं. इस बात पर आपको यकीन न हो लेकिन हनुमानजी विवाहित थे और उनकी पत्नी भी थी. इस मंदिर में हनुमान जी के साथ उनकी पत्नी भी मूर्ति एक मंदिर में लगी हुई है. इसको लेकर यहां कुछ मान्यताओं और प्राचीन ग्रंथ पाराशर संहिता में मिले उल्लेख के कारण उन्हें विवाहित माना जाता है. प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, भगवान हनुमान की पत्नी सुवर्चला भगवान सूर्य पुत्री हैं.
क्यों किया था विवाह?
    बता दें कि भगवान हनुमान सूर्य देवता को अपना गुरु मानते थे. सूर्य देव के पास 9 दिव्य विद्याएं थीं. इन सभी विद्याओं का ज्ञान बजरंग बली प्राप्त करना चाहते थे. उन्हें 9 विधाओं में से 5 विधाओं का ज्ञान प्राप्त हो गया था लेकिन बची 4 को पाने के लिए उन्हें शादीशुदा होना जरूरी था. इस समस्या के निराकरण के लिए सूर्य देव ने हनुमानजी से विवाह करने की बात कही. हनुमान जी की रजामंदी मिलने के बाद सूर्य देव के तेज से एक कन्‍या का जन्‍म हुआ. इसका नाम सुर्वचला था. सूर्य देव ने हनुमान जी को सुवर्चला से शादी करने को कहा. मान्यताओं की मानें, तो सुवर्चला किसी गर्भ से नहीं जन्मी थी और वो बिना योनि के पैदा हुई थी. ऐसे में उससे शादी करने के बाद भी हनुमान जी के ब्रह्मचर्य में कोई बाधा नहीं पड़ी. विवाह के बाद सुवर्चला फिर से अपनी तपस्या में लीन हो गई और बची हुई हनुमानजी ने चार विद्याओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया.

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