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मेडिकल माफिया का जाल, और लोगो की घुटती साँसे

कोरोना संकट और डर के धंधे 
    सामन्यत: दवाइयों, सर्जिकल उपकरणो व वैक्सीन आदि का निर्माण करने वाली कंपनियों का प्रोफ़िट दोगुने से लेकर बीस गुना तक होता है। डर के इस धंधे में मेडिकल, पेरा मेडिकल, नर्सिंग, फ़ार्मा कालेज से खेल शुरू होता है और छोटे बड़े निजी व सरकारी अस्पतालों व निजी चिकित्सकों से लेकर दवाइयों, सर्जिकल उपकरणो, किताबों व वैक्सीन आदि का निर्माण करने वाली देशी व बहुराष्ट्रीय कंपनियों तक इनका जाल फैला हुआ है। 
यह चौथा सबसे बड़ा धंधा है
    दुनिया में ड्रग्स, पोर्न व हथियारो के साथ यह ऐसा चौथा सबसे बड़ा धंधा है जिसमें दस बीस गुना तक प्रोफ़िट होता है। ऐसे में जबकि विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाऐ सेचुरेशसन पर आ गयी हैं “मौत के भय” की इस धंधे ने विकराल रूप ले लिया है। ड्रग्स कंपनियों द्वारा धूर्त व विश्व विजेता बनने की होड़ में लगे चीन की सहायता से कृत्रिम रूप से विकसित कोरोना वायरस के संक्रमण को विश्वभर में फैलाकर एक घृणित खेल खड़ा कर दिया गया है। जहाँ हर ओर बस लूट है, शोषण है, सिसकियाँ है और लपलपाते गिद्ध हैं। 
आपदा में अवसर
     “आपदा में अवसर” तलाश रहे धन पिपासु कंपनियों का बाज़ार डबल्यूएचओ, अनेक देशों की सरकारें, सत्तारूढ़ व विपक्षी दल, और मुख्यधारा का मीडिया कर रहा है। अनुमान है कि पूरी दुनिया में सरकारों व जनता ने ने पिछले 18 महीनो में उससे पूर्व के एक वर्ष के खर्च का पाँच से छः गुना खर्च स्वास्थ्य के नाम पर किया है। इनमे से लगभग 80% खर्च पेनिक बाइंग के रूप में किया गया यानि बिना ज़रूरत के डर व घबराहट में। यानि पूरे स्वास्थ्य तंत्र ने अंधाधुंध कमाई की और कई गुना प्रोफ़िट कमाया व कमा रहे हैं। इस लाभ में नेताओ, नौकरशाहों, न्यायधीशो व मीडिया को भी लगातार “कट मनी” या शेयर मिल रहा है। भारत व दुनिया में इस क्षेत्र का गहराई से अध्ययन करेंगे तो पता चल जाएगा कि नेताओ, नौकरशाहों, न्यायधीशो व मीडिया की बड़ी हिस्सेदारी इन ड्रग्स व वेक्सीन कंपनियों व स्वास्थ्य से जुड़े कोलेजो में है।
अनगिनत होने वाली अकाल मौतें
     भारत के संदर्भ में अगर गहराई से बात की जाए तो आप पाएँगे कि यूपीए सरकार के समय आतंकी हमले, साम्प्रदायिक दंगे आदि बड़ी चुनोती बन गए थे और असुरक्षा की आड़ में आयातित सुरक्षा उपकरणो व निजी सुरक्षा गार्डों का बाज़ार खड़ा किया गया था। इधर एनडीए के शासनकाल में बीमारियों के नाम पर मेडिकल माफिया का जाल खड़ा कर दिया गया है जिसका अभी और कई गुना विस्तार होना है। देश में पिछले छः वर्षों में इस दिशा में कई गुना वृद्धि आश्चर्यजनक है। क्या सरकार को पहले से ही मालूम था कि बड़ी बीमारी व पेनेडेमिक आने वाली है ? जिस तरीक़े से मेडिकल के क्षेत्र में लूट, होल्डिंग, कालाबाज़ारी, एंबुलेंस, दवाइयों, अंग प्रत्यारोपण, कई गुना बिल बनाने, मृत मरीन को वेंटिलेटर के सहारे ज़िंदा दिखा बिल बढ़ाने, अस्पताल में बेड आदि की कई गुना दामों पर ख़रीद फ़रोख़्त हो रही है वह बेहद शर्मनाक व अमानवीय है और उससे भी ज्यादा अमानवीय हैं अनगिनत होने वाली अकाल मौतें है।
     इससे पूरा सरकारी तंत्र व मेडिकल उद्योग कठघरे में खड़ा है और इस उद्योग से जुड़े अच्छे लोग भी इस षड्यंत का शिकार होकर बदनाम हो रहे हैं। कुछ लालचियो ने देश व दुनिया को जान बूझकर मौत के कुएँ में धकेल दिया गया है। देश सरकारी व निजी दोनो क्षेत्रों की लूट, अराजकता, कुप्रबंधन, कुशासन व निर्दयता का मूकदर्शक बन गया है और हर आम व ख़ास आदमी हर पल मौत और डर के साए में जीने को मजबूर है। सच देश का हर नागरिक अकेला , लाचार व मजबूर है और मात्र अपने ही प्रयत्नों से ज़िंदा रहने की कोशिश में जूझ रहा है।
   यहां महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या यही जीडीपी बढ़ाने, विकास व ग्लोबलाइज़ेशन का मॉडल है यूपीए व एनडीए सरकारों के पास ?


(अनुज अग्रवाल)

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