दो बहनें बिना किसी मदत के संक्रमित परिवारों को मुफ्त पहुंचाती हैं खाना
Headline News
Loading...

Ads Area

दो बहनें बिना किसी मदत के संक्रमित परिवारों को मुफ्त पहुंचाती हैं खाना

   पटना/बिहार।। कोरोना संक्रमण बढ़ते प्रकोप से आम लोग बेरोजगारी का सामना कर रहे है वही कई लोगो की नौबत लगातार चल रहे लॉकडाउन से जहा लोगो का जीवन यापन करना बमुश्किल हो चूका है वही कई गरीब परिवारों के तो भूखे मरने की नौबत आ गई है। आमतौर पर कोरोना संक्रमित परिवारों के सामने तो कई समस्याएं आती हैं, लेकिन सबसे बड़ी समस्या उनके दोनों टाइम के पौष्टिक भोजन बनाने की आती है। ऐसे में अगर कोई उनके घर दोनों टाइम का भोजन पहुंचा दे, तो क्या कहने। 
    ऐसी ही समस्या से जब पटना के राजेंद्रनगर की दो बहनों का रू-ब-रू होना पडा तब उन्होंने कोरोना संक्रमित परिवारों को भोजन पहुंचाने का बीड़ा उठाया। आज ये दोनों बहनें प्रतिदिन 15 से 20 कोरोना संक्रमित परिवारों के लिए भोजन पका रही है और उसे पैकिंग कर जरूरतमंद घरों भी तक पहुंचा रही हैं। पटना के राजेंद्र नगर की रहने वाली अनुपमा सिंह और नीलिमा कोरोना संक्रति मरीजों को घर का बना हुआ स्वास्थ्यवर्धक खाना पहुंचा रही हैं। 
   घटना का जिक्र करते हुए अनुपमा ने कहा, होली के दौरान मेरी बहन और मेरी मां दोनों कोरोना पॉजिटिव हो गई थी। इस दौरान छोटी बच्ची की देखभाल से लेकर खाना पकाने तक की जिम्मेदारी मुझ पर आ गई थी। मुझे खुद ही सब कुछ संभालना पड़ा और मुझे संक्रमण नहीं हुआ था लेकिन मैं असहाय महसूस कर रही थी। इसके बाद, हमने महसूस किया कि कई और परिवार होंगे जो समान अनुभव कर रहे होंगे जो इस तरह की समस्या का सामना कर रहे होंगे। इस वजह से हमने आसपास संक्रमित परिवारों के लिए खाना बनाना और उन तक भोजन पहुंचाने का फैसला किया और उसी के बारे में सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया। 
    उन्होंने कहा, इसके बाद मुझे लगता है, प्रत्येक दिन 100 से अधिक कॉल आ रहे हैं और भोजन की मांग कर रहे हैं। सभी लोगों की इस दौर में मांग की पूर्ति तो नहीं कर सकती, लेकिन क्षमता के मुताबिक लोगों के घरों में खाना बनाकर पहुंचाती हूं। अनुपमा कहती है कि इस दौरान कई लोगों ने मदद देने की भी पेशकश की, लेकिन हमले मना कर दिया।  
    उन्होंने बताया कि वह नि:शुल्क यह सेवा कर रही हैं, जितनी शक्ति, उतनी भक्ति। उन्होंने कहा, हमने मदद की पेशकश को पूरी तरह से इनकार कर दिया है। पूरे परिवार ने अगले एक साल तक किसी भी त्योहार में नए कपडे नहीं बनाने का दृढ़ निश्चय किया। उसी बजट का जो भी हिस्सा इन चीजों पर खर्च किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि पहले दिन 20 से 25 रोटियों से शुरूआत हुई थी और आज 200 से ज्यादा रोटियां बनानी पड़ है। 
     वे कहती हैं कि इस कार्य में उनकी मां, पति और बहन मदद करती हैं। अनुपमा अगर खाना बनाने में लगी रहती है तो नीलिमा खाना पैक कर स्कूटी से संक्रमितों के घरों तक पहुंचाने का काम करती है। अनुपमा बताती है कि उनके पास दूर-दराज के मुहल्लों के संक्रमित लोगों के फोन भी आने लगे। ऐसे में कई लोगों को अनुपमा ने उसी क्षेत्र में लोगों को इस काम के लिए तैयार किया और प्रोत्साहित कर उनसे इसकी शुरूआत की।
    उन्होंने बताया कि फुलवारी शरीफ की रहने वाली उनकी भाभी प्रीति भी उस क्षेत्र के संक्रमित लोगों के लिए खाना बनाकर संक्रमितों के घर तक पहुंचा रही है। अनुपमा ने कहा, मैं भले ही इस काम की शुरूआत की थी, लेकिन अब कई मुहल्लों के लोग मिलते गए और कारवां बनता गया। जिससे संक्रमित परिवारों का बहुत राहत पहुंची है।

Post a Comment

0 Comments