मिश्री को बाग लगा दे रसिया वाला गाना तो आपने खूब सुना होगा लेकिन क्या आप जानते है की यह मिश्री आखिर बनती कैसे है? 50 - 60 साल पूर्व तक मिशरी देसी खांड से बनती थी। उसके बाद चीनी से बनने लगी। मिशरी बनाने के ले लिए कड़ाही, खोंचा, चूल्हा, एक बड़ा थाल, एक कनस्तर (पीपा) जिसमें 15 किलो घी तेल आता है, चीनी और मोटा सूती धागा चाहिए।
सबसे पहले कनस्तर को तैयार किया जाता है। इसमें आमने सामने की दो तरफ 4 इंच की दूरी पर कई बारीक छेद किये जाते है जिनमें आमने सामने के छेदों में कसे धागे बांधे जाते हैं। फिर इन छेदों पर बाहर की तरफ आटा लगा कर इन्हें बंद कर दिया जाता है। इस कनस्तर को थोड़े गहरे थाल में रखा जाता है।
अब चीनी की गाढ़ी चाशनी बनाई जाती है। यह कितनी गाढ़ी होगी और कितनी तार की होगी, यही सबसे खास बात है। बनाने वाला कारीगर इस बात को जानता है। इस चाशनी को कनस्तर में भर कर कुछ दिन के लिए बिना हिलाए छोड़ दिया जाता है। मिशरी के रवे धागे के ऊपर बनने शुरू हो जाते हैं। कुछ दिन बाद कनस्तर के बाहर लगाए गए आटे को हटा दिया जाता है।
बची हुई चाशनी इन छेदों में से बाहर निकल जाती है। कनस्तर को थाल में उल्टा भी रख देते हैं ताकि बची हुई चाशनी पूरी निकल जाए। अब कनस्तर के अंदर जो बचता है वही धागे वाली मिशरी है। इसे कालपी मिशरी भी कहते हैं। इसके अतिरिक्त पहले और भी कुछ तरह से मिशरी बनाई जाती थी जैसे थाल मिशरी, कूजा मिशरी आदि।