क्या आईएएस ऑफिसर काला चश्मा पहन कर प्रधानमंत्री के सामने जा सकता है?
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क्या आईएएस ऑफिसर काला चश्मा पहन कर प्रधानमंत्री के सामने जा सकता है?

   
   क्या आईएएस ऑफिसर काला चश्मा पहन कर किसी बड़े अधिकारी या प्रधानमंत्री के सामने जा सकता है कि नहीं? आपको शायद याद होगा मई 2015 का वो अपने तरह का पहला मामला जब किसी आईएएस अधिकारी को उनके अनापेक्षित ड्रेस कोड के चलते नोटिस जारी किया गया था।
क्या था पूरा मामला?
    छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा के दौरे के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई करने गए दो आईएएस अधिकारियों (बस्तर के ज़िलाधिकारी अमित कटारिया और दंतेवाड़ा के ज़िलाधिकारी देव सेनापति) को ड्रेस कोड का उल्लंघन करने पर राज्य सरकार ने नोटिस भेजा था। पीएम की अगुवाई के दौरान कटारिया और देवसेनापति साधारण पोशाक में थे, बस्तर के डीएम अमित कटारिया ने उस वक़्त काला चश्मा भी पहन रखा था। जबकि उन्हें ड्रेस कोड का पालन करना चाहिए था।
क्या कोई आईएएस ऑफिसर काला चश्मा (Sunglass) पहन के प्रधानमंत्री के सामने जा सकता है?
    बात चाहे हमारी संक्कृती और संस्कारों की हो या आधिकारिक शिष्टाचारों की यह हमेशा ही अपेक्षित होता है कि कोई भी व्यक्ति/अधिकारी अपने कार्य संस्कृति के अनुरूप स्वयं को प्रस्तुत करें।
   फिर भी कुछ हालात ऐसे बन जाएं कि किसी अधिकारी को किसी कारणवश इन प्रोटोकॉल को तोड़ना पड़े तो उन्हें उचित निर्णय के साथ तोड़ा जा सकता है। यहां अधिकारी को यह ध्यान रखना होगा कि मामले में हायर अथॉरिटी यानी वरिष्ठ अधिकारियों की सुरक्षा के साथ कोई समझौता ना हो। साथ ही अखिल भारतीय सेवा नियम के अनुसार आने वाले नियमों का पालन हो, लापरवाही या किसी अन्य कारणवश नियमों का उलंघन ना हो।
   मतलब विचाराधीन अधिकारी यह तभी कर सकता है जब उसके पास संतोषजनक उत्तर या उचित कारण हो। ताकी यह वैध जांच के दायरे शमिल हो कि किन हालातों में यह क़दम उठाया गया।
   जब बात VVIP की हो तो प्रोटोकॉल सर्वोच्च होता है। चाहे आप एक आईएएस या आईपीएस अधिकारी भी क्यों न हो। इन मामलों में VVIP के SPG या सुरक्षाकर्मियों के लिए सब एक जैसे होते हैं।
   जहां तक किसी अधिकारी या किसी भी व्यक्ति द्वारा ड्रेस कोड के अलावा भी किसी भी तरह की वस्तु (जिसमें चस्मा या अन्य वस्तु भी शामिल हैं) ले जाने की बात है तो उन्हें VVIP के पास ले जाने से पहले SPG सुरक्षाकर्मियों द्वारा जांच से होकर गुजरना पड़ता हैं।
   अतः कहा जा सकता है कि कोई भी व्यक्ति बिना वैध कारण के अपने वरिष्ठ अधिकारियों, देश के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के सामने या मिलने जाते समय काला चश्मा (Sunglass) नहीं पहन सकता। 
   क्या किसी आईएएस ऑफिसर को काला चश्मा पहन कर या अनौपचारिक पहनावा पहनकर प्रधानमंत्री के सामने जाना चाहिए?
   एक आदर्श वार्तालाप या बातचीत का एक वसूल होता है कि आप एक दूसरे से बात करते हुए आंखों का संपर्क (eye contact) बनाए रखें। आधिकारिक शिष्टाचारों में यह बहुत जरूरी होता है। अगर कोई अधिकारी चश्मा (sunglass) पहनकर किसी से मिले तो यह अधिकारी की ओर से किए गए बुरे व्यवहार, उसकी अज्ञानता या अहंकार का सूचक बन सकता हैं।
    यह आचरण उनके वरिष्ठों पर उनके असामान्य व्यवहार पर संदेह करने पर मजबूर कर सकता हैं जो उनके भविष्य के प्रदर्शन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते है। साथ ही यह बर्ताव जूनियर अधिकारियों और संबंधित समुदाय में गलत संदेश का वहन करेगा।
    हम स्कूल और कॉलेज के लिए खास यूनिफॉर्म की तरह कुछ ड्रेस कोड का पालन करते हैं। विशेष अवसरों पर, हम विशेष कपड़े या औपचारिक कपड़े पहनते हैं। भारतीय संस्कृति के अनुसार, हम अवसरों और उत्सवों के अनुसार कपड़े पहनते हैं। कॉरपोरेट जगत में भी, व्यावसायिकता और ड्रेसिंग का परस्पर संबंध होता है।
    तो ठीक उसी तरह, सरकार में भी कुछ नियमों/प्रोटोकॉल का विशेष रूप से उच्च अधिकारियों द्वारा पालन किया जाना अपेक्षित है। यह उनकी कार्य संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। चूंकि वे ऐसे समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं जो अपने हरएक काम के प्रति उत्तरदाई होता है और ऐसे पद का प्रतिनिधित्व करते हैं जो आम या खास सभी व्यक्तियों की नजर में होता है, जाहिर है मीडिया की नजर ऐसे मामलों में भी होती है जिसके जरिए आप ही नहीं बल्कि समस्त समुदाय उत्तरदाई बन जाता है और छोटी सी गलती भी दूसरों तक गलत संदेश प्रेषित कर सकतीं हैं।
    इसीलिए यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति या वरिष्ठ अधिकारियों से मिलते समय उपयुक्त या औपचारिक पोशाक ही पहनी जाए।
क्या है प्रोटोकॉल?
    ऑल इंडिया सर्विस कंडक्ट रूल (AIS Rule) यानी अखिल भारतीय सेवा नियम 1968 के तहत अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियो के लिए ड्रेस कोड तय किया गया है। जहां स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के आगमन पर किस तरह का ड्रेस कोड होगा यह भी तय है।
“Every member of the service shall at all times maintain absolute integrity and devotion to duty and shall do nothing which is unbecoming of a member of the Service.”
"सेवा का हर सदस्य हर समय कर्तव्य के प्रति पूर्ण निष्ठा और समर्पण बनाए रखेगा और ऐसा कुछ भी नहीं करेगा जो सेवा के सदस्य के लिए अनुपयुक्त या अशोभनीय हो।”
   अर्थात, आप बिना प्रोटोकॉल के संवैधानिक पद संभालने वाले किसी भी व्यक्ति से नहीं मिल सकते हैं। इसके अलावा हमारे संविधान में भी कहीं भी ऐसा लिखित नहीं है कि आप अपने सीनियर अधिकारी के सामने चश्मा पहनकर नहीं जा सकते। लेकिन यहां कुछ अलिखित नियम होते हैं जिसे हमेशा निर्धारित समय पर मानने की जरूरत होती है। जो कार्य संस्कृति की मांग व शिष्टाचार को प्रस्तुत करता है।
जैसे, ड्रेस कोड:
✓औपचारिक पोशाक के बिना आप संवैधानिक पद धारक व्यक्तियों का स्वागत नहीं कर सकते हैं।
✓कुछ पोशाक जैसे बिना कॉलर वाला टीशर्ट, बिना कॉलर वाला शर्ट, या बिना बंदगला आदि अनौपचारिक पोशाक मानी जाती है।
✓धूप का चश्मा या काला चश्मा आदि नहीं पहना जाना चाहिए।
✓स्पोर्ट्स शूज़ यानी खेल के जूते नहीं पहनना चाहिए बल्कि औपचारिक जुटे ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
✓इसके अलावा प्रोटोकॉल ऐसी चीज का उपयोग करने या पहनने की अनुमति नहीं देता है जो किसी VVIP के अगुवाई से संबंधित मामले में वर्जित या प्रतिबंधित है।
क्योंकी इस प्रोटोकॉल के दो मुख्य उद्देश्य हैं- प्रथिष्टित व्यक्तियों की सुरक्षा और सिविल सेवा के प्रति निष्ठा व समर्पण।
   यदि पीएम किसी जिले का दौरा कर रहे हैं, तो कलेक्टर को उचित या औपचारिक कपड़े (ड्रेस कोड) पहनना जरूरी होता है क्योंकी वह उस जिले में राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे होते हैं। इसी प्रकार, यदि कोई कलेक्टर तहसीलदार कार्यालय का दौरा करता है, तो तहसीलदार को आवश्यक प्रोटोकॉल के अनुसार बर्ताव करना होता है। यह पदानुक्रम (hierarchy) है, यहां दोहरे मापदंड जैसा कुछ नहीं है।
   अगर आप के मन में यह सवाल उठ रहा हो कि हमारे पीएम तो कई दफा प्रोटोकॉल तोड़ चुके हैं तो फिर यह पक्षपात या दोहरे मापदंड क्यों है?
   प्रधानमंत्री भी संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति होता है। जिसको प्रोटोकॉल फॉलो करना होता है। अगर कोई पीएम प्रोटोकोल के परे जाकर कोई कार्य करता है और उससे देश की सुरक्षा, अखंडता या संप्रभुता पर कोई आंच ना आए तो कुछ मामलों में इससे कोई आपत्ती नहीं है। कभी कभी प्रतिकॉल तोड़कर पीएम कोई कार्य करता है जिससे देश में नया आदर्श स्थापित हो या कुछ सरकार के प्रति जनमानस का हित हो तो प्रोटोकॉल तोड़ना कोई बड़ी बात नहीं होनी चाहिए ठीक वैसे ही जैसे आईएस अधिकारी का प्रोटोकॉल तोड़ने के पीछे कोई संतोषजनक और वैध कारण हो।
   साथ ही आपके मन में एक सवाल उठ रहा होगा कि फिर पीएम या अन्य वीवीआईपी के सुरक्षाकर्मि या SPG हमेशा काले चस्में क्यों पहने होते हैं तो फिर उन्हें कैसे इजाजत होती है?
   तो इसका सीधा सा जवाब यह कि ये ड्रेस कोडवीवीआईपी या पीएम के सुरक्षा से सीधा जुड़ा होता है और उनकी सुरक्षा सबसे ऊपर होती है। इसिके चलते उन्हे काला चश्मा पहनना जरूरी होता है। ताकी किसी भी अनैक्षिक परिस्थिति में भी इन पदासीन व्यक्तियों पर कोई आंच ना आए।
क्या होता है जब कोई आईएस अधिकरी प्रोटोकोल तोड़ता है?
   आमतौर पर, कारण बताओ नोटिस जिसे show cause notice कहा जाता है, संबंधित अधिकारी के नाम से जारी किया जाता है। यह साफ जाहिर करता है कि अधिकारी को उसके किए कार्य यानी प्रोटोकॉल का उलंघन करने पर मांगे जवाब में कारणों सहित संतोषजनक जवाब देना होगा।
   अन्यथा अथवा संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई का निर्देश दिया जाता है जो कि अपराध भी माना जा सकता हैं। अगर यह अपराध माना जाता है तो इसका अन्तिम निर्णय लेने से पहले ’दूसरे पक्ष की सुनवाई’ यानी संबंधित अधिकारी का पक्ष और उसका उस कार्य के पीछे का समुचित उद्देश्य प्रदान करना होता है जहां अधिकारी द्वारा न्याय की गुंजाइश होती हैं।
    अगर हम ऊपर दिए गए मामले में बात करें तो यहां भी वजहें अनेक हो सकते हैं, अनेक कारण हो सकते हैं। जिसकी सुनवाई के बाद सामान्य प्रशासन विभाग ने दोनों कलेक्टरों को show cause यानी कारण बताओ नोटिस जारी कर भविष्य में इसका ख्याल रखने के लिए कहा है ताकी इस तरह का बर्ताव फिर ना हो।
   अगर कोई आईएस अधिकारी अपने कार्य के प्रति निष्ठावान है, कर्तव्य के प्रति सजग है और ईमानदार है तो उसके जनमानस के लिए किए गए कार्य और उसका प्रदर्शन सर्वोच्च माना जाना चाहिए। और यही हुआ ऊपर दिए गए मामले में।
   अन्त में यही कि इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि सम्मान दिखाने या व्यक्त करने के लिए प्रोटोकॉल का पालन किया जाना चाहिए। क्योंकी प्रोटोकॉल तोड़ कर कहीं न कहीं आप सम्मान खोते हैं अपने प्रति और अपने समुदाय के प्रति दूसरों की नजर में और देश की नजर में।
     व्यक्ति के कपड़े या पोशाक उससे जुड़ी भावना को, व्यक्तित्व को व्यक्त करने का मौके देने के बजाय हैं व्यक्ति के कार्य और गुण उसका परिचय दे तो वह किसी को भी जीत सकता है। एक ईमानदार अधिकारी के मामले में कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसके पास कौन से कपड़े/धूप के चश्मे हैं, क्योंकी अंत में एक ही बात मायने रखती हैं कि एक IAS अधिकारी के रूप में व्यक्ति आम लोगों के जीवन में क्या अंतर ला सकता है।
     जब कोई व्यक्ति संवैधानिक पद पर आसीन होता है तो उसको प्रोटोकोल यानी नियमों का पालन करना पड़ता है। क्योंकी शक्तियां अपन साथ बहुत सारी जिम्मेदारियां भी लेकर आती है।
    जब कोई अधिकारी या कोई सामान्य व्यक्ति भी अगर पीएम से मिले तो कम से कम उसका पोशाक औपचारिक होना चाहिए। अपवाद तभी लागू होती है कि आप किन हालातों में पीएम या अपने उच्च अधिकारीयों से मिलते हैं। क्योंकी किसी भी पद पर रहते हुए आपके पास कोई कार्य करने के पीछे एक उचित कारण होना चाहिए।

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