औरंगजेब के दरबार में एक शिकारी जंगल से पकड़कर एक बड़ा भारी शेर लाया. शेर लोहे के पिंजड़े में बंद था और बार- बार दहाड़ रहा था.. बादशाह कहता था... इससे बड़ा भयानक शेर दूसरा नहीं मिल सकता, दरबारियों ने हाँ में हाँ मिलायी, लेकिन यसवंत सिंह जी ने कहा- इससे भी अधिक शक्तिशाली शेर मेरे पास है. बादशाह को बड़ा क्रोध हुआ.
उसने कहा तुम अपने शेर को इससे लड़ने को छोडो. यदि तुम्हारा शेर हार गया तो तुम्हारा सर काट लिया जायेगा... दुसरे दिन किले के मैदान में दो शेरों का मुकाबला देखने बहुत बड़ी भीड़ इकठ्ठा हो गयी. औरंगजेब बादशाह भी ठीक समय पर आकर अपने सिंहासन पर बैठ गया.
राजा जसवन्त सिंह अपने दस वर्ष के पुत्र पृथ्वी सिंह के साथ आये... उन्हें देखकर बादशाह ने पूछा-- आपका शेर कहाँ है? यशवंत सिंह बोले- मैं अपना शेर अपने साथ लाया हूँ. आप लडाई की आज्ञा दीजिये, बादशाह की आज्ञा से जंगली शेर को लोहे के बड़े पिंजड़े में छोड़ दिया गया.
यशवंत सिंह ने अपने पुत्र को उस पिंजड़े में घुस जाने को कहा. बादशाह एवं वहां के लोग हक्के-बक्के रह गए, किन्तु दस वर्ष का बालक पृथ्वी सिंह पिता को प्रणाम करके हँसते-हँसते शेर के पिंजड़े में घुस गया. शेर ने पृथ्वी सिंह की ओर देखा.उस तेजस्वी बालक के नेत्रों को देखते हुए ही एकबार वह पूंछ दबाकर पीछे हट गया, लेकिन शिकारिओं ने भाले की नोक से उसे उकसाया. वह शेर क्रोध में दहाड़ मारकर पृथ्वी सिंह पर टूट पड़ा. बालक एक ओर हट गया और उसने अपनी तलवार खींच ली. पुत्र को तलवार निकालते हुए देखकर यशवंत सिंह ने पुकारा- बेटा, तू यह क्या करता है? शेर के पास तलवार तो है नहीं, फिर क्या उसपर तलवार चलाएगा? यह तो धर्मयुद्ध नहीं है.
पिता की बात सुनकर पृथ्वी सिंह ने तलवार फेंक दी और वह शेर पर टूट पड़ा. काफी संघर्ष के बाद उस छोटे से बालक ने शेर का जबड़ा पकड़कर फाड़ दिया और फिर पूरे शरीर को चीरकर दो टुकड़े करके फेंक दिया. भीड़ ने पृथ्वी सिंह की जय-जयकार करने लगी. शेर के खून से सना पृथ्वी सिंह जब पिंजड़े से बाहर निकला तो यशवंत सिंह ने दौड़कर अपने पुत्र को छाती से लगा लिए. . (कहा जाता हे की उस दुष्ट और कपटी मुग़ल ने पृथ्वी सिंह को उपहार स्वरूप वस्त्र दिए जिनमे जहर लगा हुआ था..!! उन्हें पहने के बाद पृथ्वी सिंह की मृत्यु हो गयी थी..!! ऐसे थे हमारे पूर्वजों के कारनामे जो वीरता से ओतप्रोत थे.