इसका कारण है कि देश के विभाजन के बाद रायसीना हिल्स पर 21 जून 1948 तक लॉर्ड माउंटबेटन का कब्जा था। अब किसी अंग्रेज अधिकारी के घर पर तो भारत का झंडा फहरा नहीं सकते थे। इसीलिए नेहरू ने लालकिले पर 15 अगस्त नहीं बल्कि 16 अगस्त को झंडा फहराकर स्वतंत्रता का उद्घोष कर दिया। क्योंकि तब दिल्ली में रायसीना हिल्स और लाल किला दो महत्वपूर्ण और नामचीन इमारत थे।
लाल किले पर भी 1857 से 1947 तक अंग्रेजों का अधिकार था। देश छोड़ने के साथ यह अधिकार भी समाप्त हो गया। लाल किला इंडो-इस्लामिक शैली में बनी एक इमारत है, जो नेहरू-गांधी की हिन्दू-मुस्लिम एकता सिद्धांत को पुख्ता करती थी।
तभी से रायसीना हिल्स पर 15 अगस्त और 26 जनवरी को झंडा न फहराकर लालकिले पर झंडा फहराने का प्रचलन है। साथ ही साथ इस दिन राष्ट्रपति और उसके सभी स्टाफ लालकिले पर उपस्थित होते हैं। अब तक इस रिवाज से छेड़छाड़ नहीं की गई है। लेकिन राष्ट्रपति भवन के शिखर पर भारत का झंडा हमेशा लगा रहता है। इसका मतलब यह है कि जरूर यहां पर ध्वजारोहण होता होगा। लेकिन इसे मीडिया में लाया नहीं जाता क्योंकि सारी मीडिया लालकिले के कवरेज में व्यस्त रहती है।
रायसीना हिल्स पर बने इस भवन को उस समय (1950 तक) वायसराय हाउस कहा जाता था। अब इसे राष्ट्रपति भवन कहा जाता है। इसकी ऊँचाई 18 मीटर है। इसे 1911 में जब भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित की गई थी तब वहां के 300 परिवारों के 4000 एकड़ जमीन को भूमि अधिग्रहण नीति, 1894 के अनुसार हड़प ली गई थी। इस नीति के अनुसार सरकार जब चाहे किसी की जमीन हड़पकर सरकारी काम कर सकती है।
इस भवन को बनाने का लक्ष्य 4 साल रखा गया था लेकिन विश्व युद्ध के कारण 19 साल लग गए। 1931 में पहली बार वायसरॉय लार्ड इरविन ने इसमें रहना शुरू किया था। यहीं से अंग्रेज सरकार पूरे भारत और शासन करती थी।
वर्तमान भारत के राष्ट्रपति, उन कक्षों में नहीं रहते, जहां वायसरॉय रहते थे, बल्कि वे अतिथि-कक्ष में रहते हैं। भारत के प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचार्य को यहां का मुख्य शयन कक्ष, अपनी विनीत नम्र रुचियों के कारण, अति आडंबर पूर्ण लगा जिसके कारण उन्होंने अतिथि कक्ष में रहना उचित समझा। उनके उपरांत सभी राष्ट्रपतियों ने यही परंपरा निभाई।