रविवार की छुट्टी के लिए 8 साल तक करना पड़ा आन्दोलन
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रविवार की छुट्टी के लिए 8 साल तक करना पड़ा आन्दोलन

भारत में रविवार की छुट्टी की व्यवस्था कब और कैसे हुई?
narayan meghaji lokhande sunday holiday
   भारतीय संस्कृति में केवल एक दिन मासिक कार्य अवकाश हुआ करता था अमावस्या को। वैसे पहले काम का बहुत अधिक दबाव कभी नहीं था। फिर रविवार अवकाश का दिन कैसे निर्धारित हुआ? किसने करवाया और इसके पीछे उस महान व्यक्ति का क्या मकसद था?
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क्या है इसका इतिहास?
   साथियों जिस व्यक्ति की वजह से हमें ये छुट्टी हासिल हुयी है, उस महापुरुष का नाम है "नारायण मेघाजी लोखंडे।" नारायण मेघाजी लोखंडे ये जोतीराव फुलेजी के सत्य शोधक आन्दोलन के कार्यकर्ता थे और कामगार नेता भी थे।
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अंग्रेजों के कोडे खाकर करना पड़ता था काम 
   अंग्रेजो के समय में हफ्ते के सातो दिन मजदूरो को लगातार कोड़ो की छाया में काम करना पड़ता था। लेकिन नारायण मेघाजी लोखंडे जी का ये मानना था कि साप्ताह में सात दिन हम अपने और अपने परिवार के लिए ही काम करते है। लेकिन जिस समाज की बदौलत हमें नौकरिया मिली है, उस समाज की समस्या छुड़ाने के लिए हमें एक दिन छुट्टी मिलनी चाहिए।  
रविवार की छुट्टी के लिए करना पड़ा आन्दोलन 
 उसके लिए उन्होंने अंग्रेजो के सामने 1881 में एक प्रस्ताव रखा। लेकिन अंग्रेज ये प्रस्ताव मानने के लिए तैयार नहीं थे। इसलिए आख़िरकार नारायण मेघाजी लोखंडे जी को इस "Sunday" (रविवार)  की छुट्टी के लिए 1881 में आन्दोलन करना पड़ा।
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8 साल चला आन्दोलन 
 ये आन्दोलन दिन-ब-दिन बढ़ता गया। लगभग 8 साल ये आन्दोलन चला। आखिरकार 1889 में अंग्रेजो को Sunday यानि की रविवार की एक साप्ताहिक छुट्टी का ऐलान करना पड़ा। 
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