रूद्राक्ष को शिव का रूप क्यों माना जाता है?
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रूद्राक्ष को शिव का रूप क्यों माना जाता है?

  रूद्राक्ष को शिव का रूप माना गया है। इसको धारण करने वाले व्यक्तियों की निरोगी काया तथा धन लक्ष्मी की प्राप्ति एवं मान सम्मान में वृद्धि होती है। वे दूसरों को अपनी ओर आकर्षित करने लगते हैं। आज के युग में हर व्यक्ति को उस वस्तु की परम आवश्यकता है जो कि अति शीघ्र से शीघ्र तथा कम समय में ज्यादा से ज्यादा फायदा दे ऐसा हे कमल रुद्राक्ष का है।
क्या रुद्राक्ष धारण करना चाहिए
  असली रुद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए। असली रुद्राक्ष किसी को नुकसान नहीं देता है। रुद्राक्ष किसी विशेष राशि से सम्बन्धित नहीं है। अमली रुद्राक्ष पहनने के एक घन्टे के अन्दर ही अपना प्रभाव दिखाने लगता है। अतः नकली, घुना काठ का जोड़ा हुआ रुद्राक्ष फायदे की जगह नुकसान ही देता है।
  आप रुद्राक्ष किसी विश्वसनीय या अनुभवी दुकानदार से लेकर ही पहनें जिससे फायदा न होने पर आप उसको वापिस कर सकते हैं।
  इसलिए आजकल दुनियां भर के वैज्ञानिकों ने कहा है कि रुद्राक्ष एक ऐसी वस्तु है जो कि शरीर की रक्षा करके शरीर के अन्दर और बाहर की तमाम बीमारियों को निकल कर बाहर फेंक देता है। इसलिये आज के सांइसदानों ने रुद्राक्ष को शरीर की रक्षा हेतु अद्भुत बताया है। जिसका असर तुरन्त होता है । इसलिये असली रुद्राक्ष होना चाहिये। रुद्राक्ष कोई ऐसी दुर्लभ वस्तु नहीं है और न ही वह कोई ज्यादा मंहगा होता है। यदि कोई रुद्राक्ष मंहगा होता भी है तो उसका प्रभाव तुरन्त दिखाई पड़ता है । इसलिये आज कल की दुनियाँ में रुद्राक्ष की मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है ।
Rudraksh
सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल
सिटी प्रेसीडेंट इंटरनेशनल वास्तु अकादमी, कोलकाता
रुद्राक्ष की उत्पत्ति
  रुद्राक्ष की उत्पति से जुडी एक कथा है - एक समय की बात है भगवान शंकर तपस्या करते हुए थक गये थे । थक कर उन्होंने अपनी आंखे बन्द कर ली। उनकी आँखों से आंसू बहने लगे और उन आँसुनों की कुछ बूदें पृथ्वी पर गिर पड़ी उन बूंदों से कई रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हो गये ।
  रूद्र का अर्थ है रुदन करना और क्ष का अर्थ है - नाश करना। अर्थात रुद्राक्ष का अर्थ है दुःख का नाश करने वाला तथा रोगों का नाश करने वाला। रूद्राक्ष की उत्पत्ति हुई तभी सभी देवी देवताओं ने रूद्रक्ष को अपने-अपने शरीर में अंगीकार कर लिया। वैसे तो सभी रुद्राक्ष शिव का रूप माने गये हैं। जिस-जिस देवी देवताओं ने रुद्राक्ष धारण किया वह उसी तरह उन स्वरुप में प्रसिद्ध हुए।
मुख का अर्थ -
  मुख का अर्थ है रुद्राक्ष में उपस्थित धारियां (लाईने) एवं छेद भी जो कुदरती होते हैं।
रूद्राक्ष के फायदे और परहेज 
रूद्राक्ष के फायदे
  रुद्राक्ष के कई फायदे हैं। शिव पुराण में लाखों फायदे बताये गये हैं। वैसे तो हमारे देश के वरिष्ठ नेतागण, जो कि ऊँच पदों के अधिकारी हैं तथा देश के बड़े व्यापारी लोग जो कि विदेशों में भी हैं उन्होंने रुद्राक्ष का इस्तेमाल में लिया हैं।
शिव महापुराण, विद्याश्वर-संहिता अध्याय २५ भाग ६१ से ९०
आज हम ६१ से ६६ तक की व्याख्या करेंगे।
पञ्चदेवप्रियश्चैव सर्वदेवप्रियस्तथा |
सर्वमन्त्रञ्जपेद्भक्तो रुद्राक्षमालय प्रिये || ६१
अर्थात : शिव ने पार्वती से कहा, "मेरे प्यार, किसी भी भगवान की पूजा रुद्राक्ष से की जा सकती है जो पांच देवताओं (पंचायतन अर्थ गणेश, सूर्य, देवी, विष्णु और शिव) के साथ-साथ अन्य देवताओं को भी प्रिय है।
विष्णवदिदेवभक्ताश्च धरयेयुर्ना संशायह |
रुद्रभक्तो विशेन रुद्राक्षन्धरायत्साद || ६२ ||
अर्थात: विष्णु तथा अन्य देवताओं के भक्त भी रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है। शिव के भक्तों को विशेष रूप से प्रतिदिन रुद्राक्ष धारण करना होता है।
रुद्राक्ष विविधाहा प्रोतस्तेषं भेदनवादम्याहं |
श्रीनु पार्वती सद्भक्त्य भुक्तिमुक्तिफलप्रदान || ६३ ||
अर्थात : हे पार्वती, रुद्राक्ष अनेक प्रकार के होते हैं। यह मोक्ष प्रदान करता है। मैं आपको उनके रहस्य बताता हूँ। तुम ध्यान से सुनो।
एकवक्त्रः शिवः साक्षद्भुक्तिमुक्तिफलप्रदः |
तस्य दर्शनमात्रेण ब्रह्महत्यं व्यपोहति || ६४ ||
अर्थात: एक मुखी रुद्राक्ष स्वयं शिव हैं, जो मोक्ष और मुक्ति का फल प्रदान करते हैं। इसकी झलक मात्र से ब्रह्महत्या का निवारण हो जाएगा।
यात्रा संपुजितास्तत्र लक्ष्मीर्दुर्तरं नहि |
नश्यन्त्युपद्रवः सर्वे सर्वकाम भवन्ति हि || ६५ ||
अर्थात: जहां भी रुद्राक्ष की पूजा की जाती है, लक्ष्मी कभी दूर नहीं होती, शांति से कंपन दूर हो जाते हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
द्विवाक्त्रो देवदेवेशः सर्वकामफलप्रदः |
विशेषतः स रुद्राक्षो गोवधां नशयेद्रुतं || ६६ ||
अर्थात: दो मुखी रुद्राक्ष मनोकामना पूर्ण करता है। यह देवदेवेश्वर का स्वरूप है। यह गाय की हत्या के पाप को तुरंत शुद्ध करता है।
रुद्राक्ष का परहेज
  रुद्राक्ष के अन्दर कोई खास परहेज तो नहीं है। परन्तु फिर भी शोच इत्यादि या रति क्रिया के समय इसको उतार देना चाहिये । अगर किसी समय गलती से पहने रह जायें तो इसको उतार कर किसी शुद्ध जल से धोकर अपने इष्ट देवता में चरणों से स्पर्श करने से इसमें फिर शुद्धता आ जाती है। रुद्राक्ष को एक व्यक्ति के बाद किसी दूसरे के इस्तेमाल करने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि जब किसी से लेकर पहने तो उसको शुद्ध जल से धो लेना चाहिये। अगर रुद्राक्ष का धागा मेला हो जाये तो उसको समय-समय पर बदलते रहना चाहिये।
रुद्राक्ष के गुणों को कैसे बढ़ाये
  रुद्राक्ष पर किसी प्रकार की मैल या धूल या इत्र की परत नहीं जमनी चाहिये। अगर किसी प्रकार गन्दा हो जाये तो उसे नए ब्रश से साफ करते रहना चाहिये। उसके बाद उस पर इत्र या सेन्ट व देशी घी या सरसों का तेल लगाने से रुद्राक्ष की मजबूती एवं गुणों में और भी वृद्धि हो जाती है।

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