क्या सही में ऑटो चलाकर परिवार का ‘पेट भरते हैं मोदी के मंझले भाई’?
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क्या सही में ऑटो चलाकर परिवार का ‘पेट भरते हैं मोदी के मंझले भाई’?

    यह ‘मोदीजी के मंझले भाई टेम्पो चलाकर परिवार का भरण पोषण करते हैं और अपने यहाँ तो विधायक के परिवार वाले AC गाड़ियों में एन्जॉय करते हैं।’ 
     ऐसा हम नहीं कह रहे बल्कि एक फ़ेसबुक पोस्ट यह दावा कर रही है। पोस्ट में इस शख़्स को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाई बताया गया है। इसके ज़रिए यह साबित करने की कोशिश की गई है देश का प्रधानमंत्री अपनों के लिए भी कुछ नहीं करता और उनके विरोधी (यानी आप पार्टी, कांग्रेस आदि) सत्ता की मलाई खाते हैं।
    बात तो ‘अच्छी’ है, लेकिन सच्ची नहीं है। लोग भी बिना सोचे-समझें भावना में बहकर इस झूठ को शेयर कर जाने-अनजाने प्रचारित कर रहे हैं। देखें,
     आपने देखा कि ‘chalo chalen modi ji ke sath’ (चलो चलें मोदी जी के साथ) नाम के प्रोफ़ाइल पेज पर डाली गई इस तस्वीर को क़रीब साढ़े सात हज़ार लोगों ने लाइक किया है, और उससे भी ज़्यादा (10,660 shares से ज़्यादा) बार शेयर किया गया है।
     कुछ दिन पहले हमने ऐसे ही एक पोस्ट का झूठ आपको बताया था जिसमें एक दुकानदार को मोदी का भाई बताकर भावनात्मक समर्थन हासिल करने की कोशिश की जा रही थी। 
पढ़ें, दुकान चलाते ‘नमो के बड़े भाई’ का सच
    उस पोस्ट में दिखाए शख़्स का चेहरा मोदी जी से नहीं मिलता था, लेकिन इस तस्वीर में हैरान करने वाली समानता दिखती है। शायद इसी का फ़ायदा उठाकर इसे शेयर किया गया है और लोगों ने भी इसे सच मान लिया है।
    लेकिन यह सच नहीं है। क्योंकि जिस शख़्स को लोगों ने मोदी का भाई समझा है, वह दरअसल अदीलाबाद का एक ऑटो ड्राइवर है। 
     अदीलाबाद ज़िला तेलंगाना राज्य का हिस्सा है। यहाँ के इस ऑटो ड्राइवर के साथ स्थानीय व यहाँ आने वाले लोग ख़ूब सेल्फ़ियाँ लेते हैं। लेकिन ‘मोदी का भाई’ समझकर नहीं, बल्कि उनका ही डुप्लिकेट मानकर, क्योंकि इनकी शक्ल उनसे बहुत हद तक मिलती है। लोग इन्हें देख हैरान होकर मुस्कुरा देते हैं।
    तो यह था ‘मोदी के ऑटो ड्राइवर भाई’ का सच। जिस पेज से यह झूठ फैलाया गया उसका नाम ही सारी कहानी बयान कर देता है।

       हम तो इतना ही कहेंगे, कि नरेंद्र मोदी सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री हैं। उन्हें इस तरह के झूठे प्रचार की आवश्यकता नहीं है। ऐसा करके उनके प्रशंसक उनका ही नुक़सान कर रहे हैं, क्योंकि जब पोल खुलेगी तो यही प्रचार बदनामी में तब्दील हो जाएगा और विरोधियों को उपहास का अवसर मिल जाएगा। लेकिन इन झूठों का पर्दाफ़ाश करने की यह मुहिम भी यूँ ही चलती रहेगी, क्योंकि हमारा मानना है कि वैचारिक रूप से कमज़ोर लोग ही झूठ का सहारा लेते हैं।