सरकार बैकों के साथ 20-20 मैच खेलना बंद करे, नहीं तो विनाशकारी होंगे नतीजे - डिप्टी गवर्नर,आरबीआई
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सरकार बैकों के साथ 20-20 मैच खेलना बंद करे, नहीं तो विनाशकारी होंगे नतीजे - डिप्टी गवर्नर,आरबीआई

     रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने बैंकों की स्वायत्तता की वकालत की है. आचार्य ने कहा कि सरकार बैकों के साथ 20-20 मैच खेलना बंद करे, नहीं तो इसके विनाशकारी नतीजे हो सकते हैं.
    सीबीआई में जिस वक्त केंद्र सरकार के हस्तक्षेप को लेकर भूचाल मचा है, ठीक उसी समय बैंकों की स्वायत्तता पर आचार्य की सलाह महत्वपूर्ण मानी जा रही है. बैंकों और मंत्रियों-नेताओं के गठजोड़ की अक्सर शिकायतें आती रहती हैं. बढ़ते एनपीए और बैंकों का पैसा लेकर विदेश भागे वित्तीय अपराधियों के साथ नेताओं-नौकरशाहों के संबंध पर भी सवाल उठते रहे हैं. ऐसे में बैंकों के लिए 'आजादी' की मांग उठाकर आचार्य ने जताने की कोशिश की है कि अगर बैंक अपने मुताबिक काम करें तो हालात सुधर सकते हैं, वरना विनाशकारी परिणाम के लिए तैयार रहना चाहिए.
     एडी श्रॉफ मेमोरियल लेक्चर में आचार्य ने कहा, 'जो केंद्र सरकार सेंट्रल बैंकों की आजादी की कद्र नहीं करती, उसे देर सबेर वित्तीय बाजारों की नाराजगी का शिकार होना पड़ता है. महत्वपूर्ण रेगुलेटरी संस्थानों को नजरअंदाज करने का नतीजा विनाशकारी होता है.' आचार्य ने आगे कहा, सेंट्रल बैंकों को आजादी दी जाए तो इससे कई फायदे हैं, जैसे कि इससे कर्ज की लागत घटती है, अंतरराष्ट्रीय निवेश बढ़ता है और बैंक लंबे वक्त तक जिंदा रहते हैं.
    आरबीआई के डिप्टी गवर्नर की यह बात इसलिए अहम मानी जा रही है क्योंकि आगे कई राज्यों में विधानसभा चुनाव के साथ-साथ 2019 में आम चुनाव भी है. आचार्य के मुताबिक, बैंकों के मामले में फैसले ट्वेंटी-ट्वेंटी मैच (जल्दी में) की तरह लिए जा रहे हैं.
    आचार्य ने कहा, 'देश में हमेशा चुनाव होते रहते हैं. कभी राष्ट्रीय, कभी प्रादेशिक, तो कभी मध्यावधि. चुनाव नजदीक आते ही पहले किए वादे पूरे करने की जल्दी बढ़ जाती है. चुनावी घोषणा पत्र खुद डिलीवर नहीं कर सकते, इसलिए लोकलुभावन विकल्प लागू करने में तेजी आ जाती है. जबकि केंद्रीय बैंक इससे उलट टेस्ट मैच खेलते हैं.'
     डिप्टी गवर्नर ने कहा, सरकार के ट्वेंटी-ट्वेंटी मैच से इतर बैंकों का ध्यान मैच जीतने के साथ ही, अगले सेशन में बने रहने पर भी केंद्रित होता है ताकि अगला मैच भी जीता जा सके. ब्याज दर घटाए जाने के सवाल पर आचार्य ने कहा कि इसे ज्यादा घटाने पर कर्ज बढ़ता है जो आगे चलकर महंगाई का कारण बनता है. यह छोटी अवधि के लिए मजबूत आर्थिक वृद्धि का भले संकेत दे लेकिन आगे इसके नतीजे बुरे हो सकते हैं. इसके चलते दीर्घ अवधि में संदिग्ध निवेश, प्रॉपर्टी की कीमतों में गिरावट और वित्तीय संकट के खतरे झेलने पड़ सकते हैं.
    गौरतलब है कि आरबीआई से अधिकारियों ने अभी हाल में कहा है कि कुछ बैंकों के कर्ज ब्याज में छूट दी जाए. रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि केंद्र सरकार आरबीआई की रेगुलेटरी शक्तियां घटाने की तैयारी में है और पेमेंट सिस्टम के लिए अलग से कोई नियामक संस्था बनाने पर सोच रही है.

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