
अच्छी पुलिस खराब पुलिस

लेकिन इसके थी उलटा कुछ पुलिस वाले ऐसे भी हैं जो अति संवेदनशील होते हैं और छोटी छोटी बातों का भी संज्ञान लेते हैं। इसका ताजा उदाहरण हैं उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के एसपी जो रात दस बजे एक होटल के सामने वहां का इंतज़ार कर रही एक लड़की को देख कर रुक जाते हैं। लड़की उसी होटल की कर्मचारी थी और ड्यूटी ख़त्म कर घर के लिए पब्लिक ट्रासपोर्ट का इन्तजार कर रही थी।
एसपी लड़की के साथ होटल आते हैं और मैंनेजर को सख्त चेतावनी देते हैं की देर रात महिला कर्मचारी को सुरक्षित पहुँचाने की जिम्मेदारी होटल मैनेजमेंट की है और यह अनिवार्य है।
ये तो हुई पुलिस की बात, बेटियों को निडर बनाने और आत्मरक्षा के गुर सिखाने के लिए कुछ संस्थाएं भी काम कर रहीं हैं। लखनऊ की ऐसे ही एक संस्था है रेड ब्रिगेड। संस्था की आगुआ हैं उषा विश्वकर्मा।

रेड ब्रिगेड का रात का उजाला अभियान हैदराबाद और संभल में हुई दरिंदगी के विरोध में चलाया जा रहा है। अभियान के माध्यम से संदेश दिया जायेगा कि लडकियां हिम्मत न हारें, लड़कियों के लिए रात बेखौफ हों। अभियान के माध्यम से सरकार से मांग की जाएगी कि असुरक्षित महसूस करने वाली लड़कियों और महिलाओं को माँग पर पुलिस सुरक्षा उपलब्ध करी जाए और सभी तरह के शिक्षा संस्थानों के छात्राओं के लिए आत्मरक्षा के लिए प्रशिक्षण को अनिवार्य किया जाए।

उत्तर प्रदेश में बेटियां सबसे ज्यादा असुरक्षित

तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में 27 नवम्बर को जो हुआ वह 7 साल पहले हुए निर्भया काण्ड जैसा या कह लें उससे भी खौफनाक है। यह भी चिंता की बात है कि जब बेटियाँ रेप या हत्या जैसे किसी अपराध का शिकार होती हैं तो राजनीति होने लगती और समाज हिन्दू-मुसलमान के खेमों में बंट जाता है। हैदराबाद कांड के बाद अब शहर शहर प्रदर्शन हो रहें है। कुछ दिन लोग आंदोलित होंगे, रैलियाँ होंगी, प्रदर्शन होंगे, कैंडल मार्च निकाले जायेंगे और कुछ दिन बाद सब ठंडा।
अपना युद्ध खुद लड़ना होगा
जो समाज में उबाल निर्भया या हैदराबाद की बेटी के साथ हुई दरिंदगी के बाद दिखा वो हर बेटी या महिला के साथ होने वाली छोटी- बड़ी हिंसा के खिलाफ दिखना चाहिए। निर्भया कांड के सात साल बाद बेटियां पहले से ज्यादा असुरक्षित महसूस कर रहीं हैं। इसीलिए रेड ब्रिगेड लखनऊ में हर साल दिसंबर में रात का उजाला’ अभियान चलाता है।
पुलिस पता नहीं कब चेतेगी, फिलहाल हर बेटी को बोलना होगा, अपना युद्ध खुद लड़ना होगा। क्योंकि पुलिस सुरक्षा नहीं देती सुरक्षा की गाइड लाइन्स जरी करती है। हैदराबाद पुलिस ने तो यही किया। बेटियां घर से बता कर निकलें, हर पल अपनी लोकेशन घर वालों को बताएं, कैब या ऑटो में जाएं तो घर बात करने का नाटक करें। यह गाइड लाइन्स हैदराबाद पुलिस ने जारी की है। यह नाटक नहीं असलियत है पुलिस की।
राजीव ओझा
(वरिष्ठ पत्रकार हैं)