मतीरे की राड़ :सिर्फ एक तरबूज के लिए लड़ाई!
पहले हमारे भारतीय इतिहास में युद्ध की मुख्य वजह दूसरे रियासतों पर कब्जा करना होता था। कई राजाओं ने अपनी युद्ध नीति और अपनी वीरता का प्रदर्शन करते हुए इतिहास में अमर भी हुए है। पर क्या आप जानते हैं कि 1644 में राजस्थान की 2 रियासतों के बीच एक खूनी युद्ध हुआ था और आप जानकर हैरानी होगी कि इस युद्ध का कारण सिर्फ एक तरबूज था।
जी हां, आपने बिल्कुल सही पढ़ा 1644 में एक ऐसा ही युद्ध हुआ था जिसकी वजह सिर्फ एक तरबूज थी। इसे इतिहास में ''मितरे कि राड'' के नाम से जाना जाता है।
राड का क्या मतलब होता है?
राड का मतलब होता है ''झगड़ा'' जब कोई एक से अधिक दावेदार किसी वस्तु पर अपना एकाधिकार करना चाहते है, तो ऐसी स्थिति में "राड़" यानी की उस वस्तु विशेष को पाने के लिए उन सभी दावेदारों के बीच झगड़ा होता है।
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'मतीरे की राड़' का क्या मतलब है?
दरअसल राजस्थानी भाषा में मितरे मतलब 'तरबूज' होता है राड का मतलब 'झगड़ा'। इस प्रकार मतीरे की राड़ का मतलब होता है कि 'तरबूज के लिए झगड़ा' है।
मतीरे की राड़ का युद्ध क्यों हुआ था?
मितरे कि राड के युद्ध के पीछे की कहानी कुछ इस तरह है। 1664 में राजस्थान के दो रियासतें थी जिसका नाम बीकानेर और नागौर का यह दोनों रियासतें की सीमा आपस में मिलती थी दोनों रियासतों की सीमा पर है कि गांव बसा था। बीकानेर की सीमा मैं जो गांव बताता हूं उस गांव का नाम सिलवा था और दूसरी तरफ नागौर रियासत के सीमा में जाखण्या गांव था।
यह दोनों गांव की सीमा आपस में मिलते थे लेकिन अलग-अलग रियासत में आते थे। एक बार बीकानेर के गांव यानी कि सिलवा मे एक तरबूज की लता उगी और उस तरबूज की लता पड़ोस के रियासत यानी कि नागौर में चली गई और तरबूज की लता पर तरबूज के फल आ गए। यहां से असली विवाद शुरू होता है।
बीकानेर के लोगों का कहना है कि तरबूज की लता हमारी सीमा में है इसीलिए तरबूज भी हमारा हुआ जबकि नागौर के लोगों का कहना है कि फल हमारी सीमा में है तो फल भी हमारा होगा इसी पर विवाद बढ़ता गया और विवाद बढ़ता गया दोनों रियासतों के महल तक जा पहुंची दोनों रियासतों के सेना प्रमुख ने यह बात सुनी।
उन्होंने इस बात को अपनी शान समझ लिया और तरबूज हासिल करना उनकी प्रतिष्ठा का रूप बन गया। इस समय दोनों रियासतों के राजा अपने-अपने राज्य में नहीं थे, बीकानेर के राजा अभियान पर गए थे और नागौर के आजा मुगलिया दरबार में थे।
दोनों रियासतों के सेना प्रमुख ने युद्ध छेड़ दिया था बीकानेर की सेना प्रमुख रामचंद्र थे और नागौर के सेना प्रमुख सिंवधु सूखे मल थे। दरसअल, दोनो रियासत मुगल साम्राज्य के अधीन आते थे। जब दोनों राजाओं का युद्ध के विषय में पता चला नागौर के राजा ने मुगल दरबार को हस्तक्षेप करने के लिए कहा पर जब तक यह बात मुगल दरबार में पहुंचती तब तक युद्ध शुरू हो चुका था। दोनों की तरफ से हजारों सैनिकों की मौत हो चुकी थी।
अंत में बीकानेर की जीत हुई और नागौर की सेना की हार हुई। बीकानेर की सेना को जीत के फलस्वरूप उन्हें एक तरबूज मिला। यह अनोखी घटना इतिहास में अमर हो गई।