क्या रामायण काल में प्रयोग होने वाली संजीवनी बूटी आज के समय में भी है?
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क्या रामायण काल में प्रयोग होने वाली संजीवनी बूटी आज के समय में भी है?

  रामायण काल में प्रयोग होने वाली संजीवनी बूटी आज भी है लेकिन यह वर्तमान में अलग नाम से है। वैसे यह बूटी हिमालय में ही मिलती है। लेकिन यह द्रोणागिरी और फूलों की घाटी गंधमादन पर्वत पर भी मिलती है।  अब इसका नाम कीड़ाजड़ी है। यह अनुपलब्धता के चलते बहुत ही महंगी जड़ी-बूटी में शुमार है। यह आसानी से उपलब्ध नही है लेकिन इसको पाने के लिए हनुमान जी की तरह मेहनत की भी जरूरत नही है।  
   हिमालय वायाग्रा या यार्सागुम्बा (yarsagumba) के नाम से जानी जाने वाली कीड़ा जड़ी अपने कामोद्दीपक (aphrodisiac ie boost libido) गुणों के कारण मशहूर है। इसके अलावा इसके अन्य स्वास्थ्य लाभ भी होते हैं।
   हिमालय में बर्फ पिघलने पर, गढ़वाली सैकड़ों ग्रामीण दुर्लभ जड़ी बूटी, यार्सागुम्बा को इकट्ठा करने के लिए अपने क्षेत्र ग्राम पंचायत की चोटी की ओर भागते हैं। बहुत सावधानी के साथ वे लोग इसे साफ़ करते हैं और अपने पास रख लेते हैं।
   अनुभवी लोग इसे एकत्रित करके एक सीजन में लाखों कमा लेते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस जड़ी बूटी को दुनिया की सबसे महंगी जड़ी बूटी माना जाता है और ये लगभग 6 -12 लाख रूपये प्रति किलो (3000–3300 पीसेज) के हिसाब से बिकता है।
   अब यह कारोबार वैध है और सरकार तथा वन विभाग ने इसे मंज़ूर भी कर दिया है। हालाँकि इसकी रॉयल्टी भी सरकार को मिलती है। 
   यह पानसिया है। हर एक रोग का इलाज इससे संभव है। यह ब्लड शुगर में, दर्द में, खून की कमी में, किडनी की दिक्क़त में, आँखों के रोग में, वीर्य सम्बन्धी समस्याओं में, औरतों के मासिक धर्म की अनियमितता आदि सब में लाभकारी बताया जाता है। आदमी-औरत, बढे-बूढ़े, बच्चे सबके लिए यहाँ तक की खिलाडी के स्टैमिना के लिए और नपुंसकता को खत्म करने में भी यह बहुत ही उपयोगी है। अमूमन चीन के खिलाडी इसे उपयोग करते है। बाजार में इसकी कीमत अधिक होने के कारण इसकी तस्करी भी बहुत होती है वही नेपाली लोग इसके व्यापार में बताये जाते है। 

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