पहले यह समझना जरूरी है कि ट्रेन एक्सीडेंट में कौन कौन जिम्मेदार हो सकता हैं? जो ट्रेन को चलाने के लिए जिम्मेदार हैं वही और वो हैं निम्न कर्मचारी या उनका विभाग:—
- लोको पायलट (Train Driver) द्वारा किसी लाल (स्टाप) सिगनल को किसी भी वजह से पार कर जाना या सीमित गति से ज्यादा गति पर गाड़ी चलाना (लोको रनिंंग - विभाग)
- ट्रैक में कोई खराबी होना (सिविल इंजीनियरिंग विभाग)
- रेल के इंजन या सवारी या माल डिब्बों में कोई खराबी होना (मैकेनिकल विभाग)
- परिचालन में कोई त्रुटि होना (परिचालन या आपरेटिंग विभाग)
- सिगनल की कोई खराबी होना (सिगनल एवं दूरसंचार विभाग)
- ट्रैक्शन डिस्ट्रीब्यूशन उपकरणों में कोई खराबी होना(इलैक्ट्रीकल TRD विभाग)
- वाणिज्य कर्मचारियों द्वारा मालगाड़ी में uneven तरीके से लोडिंग करना, जिससे मालगाड़ी के बाक्स या वैगन डिसबैलेंस होकर डिरेलेमेन्ट का कारण बनें (वाणिज्य विभाग - इसके चान्श नगण्य हैं)
अब मूल प्रश्न पर आते हैं कि ‘अगर ट्रेन ड्राइवर पटरी नहीं बदलते तो फिर ट्रेन हादसों में वो कैसे ज़िम्मेदार माने जाते हैं?’
पटरी बदलना लोको पायलट का काम नहीं है। फिर भी यदि पटरी बदलने के स्थान (पाइंंट्स जोन) में डिरेलमेन्ट होता है तो निम्न विभाग में से किसी एक या अधिक विभाग की जिम्मेदारी हो सकती है:—
- पाइंंट्स का सही तरीके से सैट न होना और सिगनल का आ जाना (सिगनल विभाग जिम्मेदार)
- सिगनल फेल हुआ किसी भी वजह से। तब ट्रेन को स्टेशन यार्ड में लेने की पूरी जिम्मेदारी परिचालन विभाग यानि स्टेशन मास्टर और पाइंंट्स मैन की होती है। इस स्थिति में पाइंट्स पर एक क्लैम्प लगा कर उसमें ताला लगाया जाता है और स्टेशन मास्टर लाल सिगनल को पास करने के लिए एक प्रिन्टेड बुक में अथोरिटी लैटर बनाकर, स्टेशन की मोहर लगाकर और अपने हस्ताक्षर करके पाइंंट्स मैन को लोकोपायलट के पास भेजता है गाड़ी को स्टेशन के अन्दर लेने के लिए या बाहर भेजने के लिए। इसके बाद पाइंंट्स पर डिरेलमेंट होता है तो स्टेशन मास्टर और पाइंंट्स मैन की पूरी जिम्मेदारी होती है - या तो पाइंंट्स मैन ने पाइंंट्स पर क्लैम्प लगाया ही नहीं या फिर लगाया तो ठीक से नहीं लगाया। पाइंंट्स की टंगरेल और स्टाकरेल के बीच बिल्कुल गैप नहीं होना चाहिए। ये सब एनश्योर करने की ड्यूटी स्टेशन मास्टर की होती है। स्टेशन मास्टर ज्यादातर यहीं फँस जाते हैं पाइंंट्स मैन पर भरोसा करके।
- पाइंंट्स जोन में भी ट्रैक में खराबी हो सकती है।
- सवारी डिब्बे या मालगाड़ी के डिब्बे में भी खराबी हो सकती है जैसे व्हील का शार्प फ्लैन्ज होना यानि फ्लैन्ज की जितनी मोटाई होना चाहिए उससे कम हो जाना - रेल से घिस घिस के। कोई टूट फूट होना।
- लोको पायलट यदि पाइंंट्स को रिवर्स पोजीशन में सीमित गति (30 किमी) से बहुत ज्यादा गति से पास करता है तो भी डिरेलमेन्ट हो सकता है। इस स्थिति में लोकोपायलट जिम्मेदार होगा। एंजिन में स्पीडोमीटर के साथ एक सील्ड इलैक्ट्रोनिक उपकरण लगा होता है जिससे गाड़ी की गति का समय के सापेक्ष ग्राफ प्रिन्ट किया जा सकता है। इससे पाइंंट्स पर एंजिन की स्पीड ज्यादा हुयी तो लोकोपायलट की जिम्मेदारी ठहराई जा सकती है।
बड़े स्टेशनों पर ऐसा होता है पाइंंट्स का मकड़ जाल इनके ऊपर ही गाड़ियाँ चलती हैं। इनकी सही सैटिंग होना चाहिए।
ऊपर बतायी गयी पाँच वजहों में से कुछ भी हो सकता है। क्या सही वजह है उसके लिए इन पाँचों विभागों के सीनियर सुपरवाइजर/इंस्पेक्टर मौका- ए- मुआयना करके एकसीडेंट साइट का स्कैच बनाते हैं और आपस में विचार विमर्स ओर बहस भी करके ज्वाइंट नोट बनाते हैं। ज्वाइंट नोट में प्राइमाफेसी तौर पर वह बताते हैं कि कौन कौन विभाग जिम्मेदार हैं।
फिर अगले दिन इंक्वायरी होती है। इंक्वायरी के निम्न लेवल होते हैं:—
- इंसपेक्टर/SSE लेवल
- अधिकारी लेवल - इसमें भी तीन सब लेबल होते हैं । यह एक्सीडेण्ट के प्रकार पर निर्भर करता है। यह DRM या GM तय करते हैं।
- CRS - Commissioner Railway Safety इंक्वायरी। यह तब होती है जब एक भी कैजुअल्टी हो जाये या 24 घंटे से ज्यादा के लिए ट्रेन मूबमेंट बन्द हो जाये या रेलवे की सम्पत्ति को बहुत ज्यादा नुकसान हुआ हो।
इंक्वायरी में सभी सम्बंधित कर्मचारियों के स्टेटमेंट लिए जाते हैं उनसे क्रास क्वैश्चन किये जाते हैं। फिर इंक्वॉयरी कमेटी, जो कि अमूमन 3 या 4 सदस्यों की होती है, वह अपनी फायनल फाइंडिंग देती है रेल कर्मचारी के नाम और विभाग सहित। उस रिपोर्ट के आधार पर डिवीजन के ‘मंडल रेल प्रबंधक’ DRM कार्यवाही करते हैं।
इसलिए लोकोपायलट जिम्मेदार हो भी सकता है और नहीं भी। यदि डिरेलमेन्ट ब्लाक सैकशन यानि सीधी रेलवे लाइन पर हुआ है तो वहाँ लोकोपायलट के जिम्मेदार होने के चान्श नगण्य होते हैं। वहाँ केवल ट्रैक और मैकेनिकल विभाग जिम्मेदार हो सकते हैं। सिगनल विभाग भी वहाँ जिम्मेदार नहीं होता।
किसी भी रेल एक्सीडेंट के बाद इतना पंचनामा होता है कि वो कोई भुक्तभोगी (जैसे मैं) ही जान सकता है। वहाँ सब अपने विभाग को बचाने में और दूसरे को फंसाने के चक्कर में रहते हैं।उस समय ज्वाइंट नोट बनाने वाले सीनियर सुपरवाइजर एक दूसरे को दुश्मन की तरह देखते हैं।
गौर करें तो रेलवे के चारों इंजीनियरिंग विभाग और आपरेटिंग विभाग पर हमेशा किसी भी एक्सीडेण्ट में फंसने का अंदेशा बना रहता है। वैसे किसी भी घटना की इंक्वायरी रिपोर्ट 100–200 पेज में बनती है साथ ही इसमें सभी के स्टेटमेंट और डाक्यूमेंट्स सहित।