सत्यानाशी के फायदे ओर नुकसान क्या-क्या हैं?
सत्यानाशी जैसा नाम सुनकर आपको थोड़ा अजीब-सा लग रहा होगा कि यह क्या चीज है या सत्यानाशी का प्रयोग किन कामों में किया जाता होगा? कुछ लोग ऐसा भी सोच सकते हैं कि जिस पौधे का नाम ही सत्यानाशी है वह केवल नुकसान ही पहुंचाती होगी, लेकिन अगर आप भी ऐसा ही सोच रहे हैं तो आपकी सोच गलत है। सच यह है कि सत्यानाशी एक बहुत ही गुणी पौधा है और सत्यानाशी का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। कितना भी पुराना घाव, खुजली, कुष्ठ रोग आदि हो, आप सत्यानाशी का प्रयोग कर रोग से छुटकाारा पा सकते हैं।
आयुर्वेदिक किताबों में भी यह बताया गया है कि सत्यानाशी कफ-पित्त दोष को खत्म करती है। इसके दूध, पत्ते के रस, बीज के तेल से घाव और कुष्ठ रोग में लाभ होता है। इसकी जड़ का लेप करने से सूजन ठीक होती है। सत्यानाशी का प्रयोग कर आप बुखार, नींद ना आने की परेशानी, पेशाब से संबंधित विकार, पेट की गड़बड़ी आदि में भी फायदा ले सकते हैं।
सत्यानाशी क्या है?
सत्यानाशी का फल चौकोर होता है जिसके पूरे पौधों पर कांटे होते हैं। इसमें राई के समान छोटे-छोटे श्यामले रंग के बीज भरे रहते हैं। ये दहकते कोयलों पर डालने से भड़भड़ बोलते हैं। उत्तर प्रदेश में इसे भड़भाँड़ भी कहते हैं। सत्यानाशी के किसी भी भाग को तोड़ने से सोने जैसा पीला दूध निकलता है, इसलिए इसको स्वर्णक्षीरी भी कहते हैं, लेकिन आयुर्वेद के अनुसार, सत्यानाशी स्वर्णक्षीरी से पूर्णतः भिन्न है।
आयुर्वेद के अनुसार, स्वर्णक्षीरी को Euphorbia thomsoniana Boiss के नाम से जाना जाता है। यह वनस्पति कश्मीर तथा उत्तराखण्ड में 3900 मीटर की ऊँचाई पर प्राप्त होता है।
अनेक भाषाओं में सत्यानाशी के नाम
सत्यानाशी का वानस्पतिक नाम Argemone mexicana Linn. (आर्जेमोनि मेक्सिकाना) Syn-Argemone spinosa Gaterau है और यह Papaveraceae (पैपैवरेसी) कुल की है। सत्यानाशी को अनेक नामों से जाना जाता है, जो ये हैं-
Hindi – सत्यानाशी, उजर कांटा, सियाल कांटा
English – प्रिकली पॉपी, (Prickly poppy), मैक्सिकन पॉपी (Mexican poppy), Yellow thistle (येलो थिसल)
Sanskrit – कटुपर्णी
Oriya – कांटा–कुशम (Kanta-kusham)
Urdu – बरमदंडी (Baramdandi)
Kannada – अरसिन-उन्मत्ता (Arasina-unmatta)
Gujarati – दारूडी (Darudi)
Tamil – पोन्नुम्मटाई (Ponnummattai), कुडियोट्टि (Kudiyotti), कुरुक्कुमचेडि (Kurukkum-chedi)
Telugu – पिची कुसामा चेट्टु (Pichy kusama chettu)
Bengali – स्वर्णक्षीरी (Swarnakhiri), शियाल कांटा (Shial-kanta), बड़ो सियाल कांटा (Baro shialkanta)
Nepali – सत्यानाशी (Satyanashi)
Punjabi – कण्डियारी (Kandiari), स्यालकांटा (Sialkanta), भटमिल (Bhatmil), सत्यनाशा (Satyanasa), भेरबण्ड (Bherband), भटकटेता (bhatkateta), भटकटैया (Bhatkateya)
Marathi – कांटेधोत्रा (Kantedhotra), दारुरी (Daruri), फिरंगिधोत्रा (Firangidhotra)
Malayalam – पोन्नुम्मत्तुम् (Ponnunmattum)
Arabic – बागेल (Bagel)
सत्यानाशी के औषधीय गुण
सत्यानाशी के औषधीय प्रयोग, प्रयोग की मात्रा एवं विधियां ये हैंः-
रतौंधी में सत्यानाशी से लाभ-
सत्यानाशी पंचांग से दूध निकाल लें। 1 बूंद (पीले दूध) में तीन बूंद घी मिलाकर आंखों में काजल की तरह लगाने से मोतियाबिंद और रतौंधी में लाभ होता है।
आंखों के रोग में सत्यानाशी से फायदा-
1 ग्राम सत्यानाशी दूध को 50 मिली गुलाब जल में मिला लें। इसे रोजाना दो बार दो-दो बूंद आंखों में डालें। इससे आंखों की सूजन, आंखों के लाल होने आदि नेत्र विकारों में फायदा होता है।
2-2 बूंद सत्यानाशी के पत्ते के रस को आंखों में डालने से सभी प्रकार के नेत्र रोग में लाभ होता है।
सांसों के रोग और खांसी में सत्यानाशी का उपयोग लाभदायक-
500 मिग्रा से 1 ग्राम सत्यानाशी जड़ के चूर्ण को गर्म जल या गर्म दूध के साथ सुबह-शाम पिलाने से कफ बाहर निकल जाता है। इससे सांसों के रोग और खांसी में लाभ होता है। इसका पीला दूध 4-5 बूंद बतासे में डालकर खाने से लाभ होता है।
दमे की बीमारी में सत्यानाशी का प्रयोग फायदेमंद-
सत्यानाशी पंचांग का रस निकालकर उसको आग पर उबालें। जब वह रबड़ी के समान गाढ़ा हो जाय तब 500 मिली रस, 60 ग्राम पुराना गुड़ और 20 ग्राम राल मिलाकर, खरल कर लें। इसकी 250 मिग्रा की गोलियां बना लें। 1-1 गोली दिन में तीन बार गर्म पानी के साथ लेने से दमे में बहुत लाभ होता है।
पेट के दर्द में सत्यानाशी के प्रयोग से लाभ-
सत्यानाशी के 3-5 मिली पीले दूध को 10 ग्राम घी के साथ मिलाकर पिलाने से पेट का दर्द ठीक होता है।
जलोदर में सत्यानाशी के उपयोग से फायदा-
5-10 मिली सत्यानाशी पंचांग रस को दिन में 3-4 बार पिलाने से पेशाब खुलकर आता है तथा जलोदर रोग में लाभ होता है। 2-3 ग्राम बनाएं में सत्यानाशी तेल की 4-5 बूंदें डालकर सेवन करने से भी लाभ होता है।
पीलिया रोग में सत्यानाशी से लाभ-
10 मिली गिलोय के रस में सत्यानाशी तेल की 8-10 बूंद डाल लें। इसे सुबह और शाम पिलाने से पीलिया रोग में लाभ होता है।
मूत्र-विकार में सत्यानाशी से फायदा-
पेशाब में जलन हो तो सत्यानाशी के 20 ग्राम पंचांग को 200 मिली पानी में भिगो लें। इसका काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पिलाएं। इससे मूत्र विकारों में लाभ होता है।
सिफलिस रोग में सत्यानाशी का उपयोग फायदेमंद-
5 मिली सत्यानाशी पंचांग रस में दूध मिला लें। इसे दिन में 3 बार पिलाने से सिफलिस रोग में लाभ होता है।
सुजाक में सत्यानाशी का प्रयोग लाभदायक-
सुजाक में सत्यानाशी फायदा पहुंचाती है। सुजाक में 2-5 मिली पीले दूध को मक्खन के साथ लें। इसके अलावा आप इसके पत्तों के 5 मिली रस को 10 ग्राम घी में मिला भी ले सकते हैं। दिन में दो-तीन बार देने से सुजाक में लाभ होता है।
कुष्ठ रोग में सत्यानाशी के प्रयोग से लाभ-
कुष्ठ रोग और रक्तपित्त (नाक-कान अंगों से खून बहने की समस्या) में सत्यानाशी के बीजों के तेल से शरीर पर मालिश करें। इसके साथ ही 5-10 मिली पत्ते के रस में 250 मिली दूध मिलाकर सुबह और शाम पिलाने से लाभ होता है।
त्वचा रोग में सत्यानाशी का प्रयोग-
सत्यानाशी पंचांग के रस में थोड़ा नमक डालकर लम्बे समय तक सेवन करने से त्वचा के विकारों में लाभ होता है। रोजाना 5 से 10 मिली रस का सेवन लाभकारी होता है।
दाद में सत्यानाशी का उपयोग-
सत्यानशी पत्ते के रस या तेल को लगाने से दाद या दद्रु ठीक होता है।
विसर्प रोग में सत्यानाशी से लाभ-
विसर्प रोग में भी सत्यानाशी से पकाया तेल लगाने से लाभ होता है।
घाव सुखाने के लिए सत्यानाशी का प्रयोग-
सत्यानाशी के दूध को घाव पर लगाने से पुराने और बिगड़े हुए घाव ठीक होते हैं। सत्यानाशी रस को घाव पर लगाने से घाव ठीक हो जाता है।
अन्य रोगो में लाभ-
सत्यानाशी दूध को लगाने से कुष्ठ तथा फोड़ा ठीक होता है। सत्यानाशी पंचांग के पेस्ट को पीसकर पुराने घाव एवं खुजली में लगाने से लाभ होता है। छाले, फोड़े, फुंसी, खुजली, जलन, सिफलिस आदि रोग पर सत्यानाशी पंचांग का रस या पीला दूध लगाने से लाभ होता है।
सफेद दाग में सत्यानाशी से फायदा-
सत्यानाशी फूल को पीसकर अथवा सत्यानाशी दूध का लेप करने से सफेद दाग में लाभ होता है।
चोट और रक्तस्राव में सत्यानाशी से फायदा-
सत्यानाशी दूध को घाव या चोट वाले स्थान पर लगाएं। इससे चोट लगने से होने वाला रक्तस्राव बंद हो जाता है।
रोम छिद्र की सूजन में सत्यानाशी के उपयोग से फायदा-
सत्यानाशी के बीजों को काली मिर्च तथा सरसों के तेल में पीसकर लेप करें। इससे रोम छिद्र की सूजन तथा मुहाँसे की परेशानी में लाभ होता है। सत्यानाशी के बीजों को पीसकर लगाने से सोयरायसिस में लाभ होता है।
दर्द से राहत दिलाती है सत्यानाशी-
सत्यानाशी तेल की 10 बूंदों को एक ग्राम सोंठ के साथ मिलाकर सेवन करने से शरीर के सभी अंगों के दर्द ठीक हो जाते हैं।
इस्नोफिलिया में सत्यानाशी के प्रयोग से लाभ-
इस्नोफिलिया के रोगी को भी सत्यानाशी पंचांग के चूर्ण की 1 ग्राम मात्रा को दिन में दो बार दूध से प्रयोग करें। इससे लाभ होता है।
सत्यानाशी के उपयोगी भाग-
पंचांग
पत्ते
फूल
जड़
तने की छाल
दूध
सत्यानाशी के प्रयोग की मात्रा-
चूर्ण – 1-3 ग्राम
दूध- 5-10 बूंद
तेल – 10-30 बूंद
रस – 5-10 मिली
अधिक लाभ के लिए सत्यानाशी का प्रयोग चिकित्सक के परामर्शानुसार करें।
सत्यानाशी से नुकसान-
सत्यानाशी का उपयोग करते समय ये सावधानियां रखनी चाहिएः-
सत्यानााशी के बीजों का केवल शरीर के बाहरी अंगों पर ही प्रयोग ही करना चाहिए, क्योंकि यह अत्यधिक विषैले होते हैं। इसके बीज की मिलावट सरसों के तेल में करते हैं जिसके प्रयोग से मृत्यु तक हो सकती है। इसलिए सत्यानाशी का प्रयोग करते समय विशेष सावधानी बरतें।
सत्यानाशी कहां पाया या उगाया जाता है?
सत्यानाशी (Yellow Thistle) पूरे भारत में 1500 मीटर की ऊंचाई तक पाई जाती है। यह प्राकृतिक रूप से मैदानी भागों में, नदी एवं सड़कों के किनारे पर तथा वन्य क्षेत्रों में पाई जाती है। यह वनस्पति मूलतः मैक्सिको से भारत में आई, लेकिन भारत में अब यह सब जगह खर-पतवार के रूप में उत्पन्न होती है।