राजस्थान के रजवाड़ों मे मकर संक्रान्ति का पर्व महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व के रूप में मनाया जाता था। जब सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि मे प्रवेश कर्ता हैं तब मकर संक्रान्ति होती हैं । यह पर्व अंग्रेज़ी की 14 जनवरी की तारीख़ को होता हैं। इस अवसर पर तत्कालीन राजा महाराजा व क्षत्रियो के द्वारा ख़ूब दान पुण्य किया जाता था तथा आज भी उनके वंशज इस परम्परा का निर्वहन कर रहे हैं।
मेवाड़ में मकर संक्रान्ति के दिन महाराणा दान पुण्य आदि करने के बाद बाग़ बग़ीचे में गेन्द खेलते थे। गाँवो में इस दिन लोग अब "सोटा - दड़ी " खेलते हैं।
मकर संक्रान्ति पर अधिकतर महिलाओं के द्वारा ही दान किया जाता हैं। जयपुर में जनानी ड्योढ़ी के रावलों में इस दिन ब्रह्मणो व निर्धनों को चावल, मूँग, तिल के लड्डू व फ़ीणी आदि का दान दिया जाता था। वर्तमान में जयपुर में मकर संक्रान्ति के अवसर पर पतंगबाज़ी भी बहुत हर्ष के साथ की जाती हैं। पतंगबाज़ी का शौक़ महाराजा रामसिंह जी को बहुत था इसी से संभवत जयपुर में पतंगबाज़ी का चलन हुवा होगा।
मकर संक्रान्ति का पर्व पुण्य - पर्व के रूप में मनाया जाता हैं। सिरोही मे मेष संक्रान्ति पर भी गंगोनिया महादेव जी के स्थान पर हज़ारों आदमियों का मेला भरता हैं। जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह जी ने 1727 ई . में कर्क - संक्रान्ति पर मथुरा के विश्रांत घात पर सोने का तुलादान किया था।
मारवाड़ के नरेश सवाई सुरसिंहजी ने सूरसागर महल के नीचे तुला का चबूतरा बनवाया जहाँ पर उन्होंने इसी अवसर पर तुलादान किया था। आगे चल कर राजा गजसिंह जी प्रथम , महाराजा जसवंतसिंह जी प्रथम ओर महाराजा अजीतसिंघह जी व उनकी महारानियों ने भी इसी स्थान पर मकर सक्रांति पर दान कर इस पुण्य पर्व की परम्परा को निभाया था।
मारवाड़ - जोधपुर के पूज्य राजमाताजी साहिब ने जीवन पर्यन्त मकर संक्रान्ति पर्व पर दान पुण्य के साथ गजक व तिल के लड्डूओ का दान किया करते थे। यही परम्परा आज भी जोधपुर राज परिवार के की निरंतर जारी हैं।