बिना वकील के कैसे लड़ें अपना मुकदमा ?
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बिना वकील के कैसे लड़ें अपना मुकदमा ?

How to fight a case without lawyer In India – बिना वकील के मुकदमा कैसे लड़ें
     बिना वकील के अपना मुक़दमा स्वयं लड़ने की जानकारी देने से पहले यह राय देना अनिवार्य होगा कि यदि संभव हो तो अपने मुकदमे के लिए बिना जोखिम उठाए किसी वकील को नियुक्त करने का प्रयास करें क्योंकि वकील आपके मुकदमे में ठीक से एवं उचित पैरवी कर सकते हैं। अपना केस खुद लड़ने का विकल्प आपातकाल या फिर आर्थिक तंगी के चलते प्रयोग में लाया जा सकता है लेकिन प्रयास यही होना चाहिए कि आपका मुकदमा किसी अधिवक्ता की देखरेख में हो, क्योंकि सामने वाले पक्षकार द्वारा पैरवी के लिए कोई वकील तो रखा जाएगा आप किस हद तक उसका सामना करके खुद का बचाव कर पाएँगे यह कहना मुश्किल होगा।
    पर जब कोई व्यक्ति किसी किसी सिविल या आपराधिक मामले (मुक़दमे) से घिर जाता है या दोषी बनाया जाता है और वकील की भारी फ़ीस चुका पाने में वह असमर्थ है तो धारा 32. के अनुसार विशेष मामलों में बिना वकील के उपस्थिति के व्यक्ति को न्यायालय की अनुमति से अपना मुक़दमा खुद लड़ने लड़ने का अधिकार है जो अदालत की अनुमति से होता है जिसे देने के लिए न्यायालय को शक्ति प्रदान है पर मुख्तारनामा (Power of Attorney) के आधार पर किसी अन्य (परिवार,मित्र,रिस्तेदार) की तरफ से केस नहीं लड़ा जा सकता है, स्वयं अपना केस लडने के लिए कोर्ट में व्यक्ति की व्यक्तिगत उपस्थिति आवश्यक है आप न्यायालय में अपने मुक़दमे के लिए वक़ील रखेंगे यह आपकी इच्छा पर निर्भर करता हैं जब आप मुकदमे के लिए किसी वक़ील को चुनते है तो वकील पत्र पर हस्ताक्षर करके वकील को अपने मुकदमे में प्रत्येक प्रकार के अधिकार सौंप देते हैं।
    अधिवक्ता अधिनियम के अंतर्गत आप बगैर अधिवक्ता हुए विधि व्यवसाय नहीं कर सकते है परंतु अपना मुकदमा खुद लड़ सकते हैं, यह आपका नैसर्गिक अधिकार है। न्यायालय आपको अपना मुकदमा लड़ने से कतई वंचित नहीं कर सकता है । बसर्ते आपको न्यायालय से इसकी अनुमति लेनी पड़ती हैं।
न्यायाधीश से अनुमति लेना-
     आप न्यायाधीश से आज्ञा लेने के उपरांत ही स्वयं के मुकदमे में पैरवी कर सकते हैं, परन्तु न्यायाधीश को आपको वकील नियुक्त करने का परामर्श देने का अधिकार है जो माननीय न्यायाधीश द्वारा आपको दिया भी जा सकता हैं। जिसपर आप अपना पक्ष रखकर कह सकते है खुद ही पैरवी करने की अनुमति माँग सकते है एवं काग़ज़ी कार्यवाही करने एवं अपना पक्ष रखने की समस्त तैयारी के लिए उचित समय दिए जाने की माँग भी कर सकते है ।आपको चाहे सिविल या आपराधिक मामले दोषी ठहराया गया हो हर परिस्थिति में आपको वक़ील नियुक्त करने की न तो आवश्यकता होती है, न ही न्यायालय आपको वक़ील नियुक्त करने के लिए विवश करता है । वक़ील आप अपनी सुविधा के लिए खुद चुनते करते हैं। किसी भी विवाद से निपटने के लिए आपको संवैधानिक जानकारियों की ज़रूरत होती है जो आम व्यक्ति को नहीं होती है न्याय प्रक्रिया में आपको किसी प्रकार की परेशानियों का सामना न करना पड़े एवं आप अपना पक्ष सही से रख पाएँ और आपको उचित न्याय के लिए सही मार्गदर्शन मिल सके इसलिए आप न्यायालय में पैरवी के लिए वक़ील नियुक्त करते हैं ।
    इस पोस्ट के माध्यम से हम कुछ जानकारियाँ साझा करेंगे जिनकी सहायता से आप स्वयं के मुकदमे में पैरवी कर सकते हैं। यदि आपको विधि का ज्ञान नहीं है तो आपके लिए यह सब आसान नहीं होगा परन्तु यदि आपको थोड़ा भी क़ानूनी ज्ञान है तो आपको स्वयं का मुकदमा लड़ने में काफ़ी मदद मिल जाएगी। आपको अपना मुकदमा लड़ने के लिए केवल थोड़ा बहुत सामाजिक जानकारियां एवं साधारण तर्क का ज्ञान होना चाहिएसाथ ही कम से कम स्थानीय भाषा में आप निपुण होंने चाहिए ताकि अपनी बात को भाषा की मदद से प्रभावी बनाकर पेश कर सकें। इसके साथ ही कुछ अन्य बातें जो आपको समझना होगा उसके लिए आप निम्न की मदद ले सकते है।
बेयर एक्ट
आपराधिक मामले में
भारतीय साक्ष्य अधिनियम-1872
दंड प्रक्रिया सहिंता -1973
भारतीय दंड संहिता – 1860
     किसी भी अधिनियम पर बाज़ार में अलग अलग प्रकाशन की प्रकाशित बेयर एक्ट आसानी से मिल जाती हैं। जिनकी कीमत बहुत ही कम रखी जाती है जिन्हें आप बाज़ार से खरीद सकते हैं। इनकी भाषा विधि के प्रयोग में आने वाले कुछ चुने हुए आसान विधिक शब्दों द्वारा लिखी जाती है ताकि आसानी से समझ आ सके। आप उन धाराओं, उन अधिनियम को पढ़ें जिनके अन्तर्गत आपको आरोपी बनाया गया है।आपको पूरी जानकारी हासिल हो जाएगी।
    भारतीय दंड सहिंता भारत में अपराधों एवं उनके लिए दंड बताती है। दंड प्रक्रिया सहिंता उन अपराधों में किस प्रकिया से होकर व्यक्ति को दंड तक ले जाया जाएगा, इसकी व्याख्या एवं मार्ग बताती है । साक्ष्य अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि किन किन साक्ष्यों को एवं किस तरह से प्रकिया में शामिल किया जाएगा तथा किस एविडेन्स पर आरोपी को सज़ा दी निर्धारित की जा सकती है।
उपर्युक्त तीनों अधिनियम किसी भी आपराधिक मामले में सबसे अहम भूमिका निभाते हैं। समस्त मुकदमें के निस्तारण की केंद्र बिंदु इन तीनों पर ही पर ही टिकी होती है।
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य –
     आपराधिक मामले में पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने पर या पुलिस द्वारा आपको बंदी बनाया जाने पर संविधान के अनुच्छेद 22 के अंतर्गत पुलिस को आपको गिरफ्तार करने के चौबीस घंटों के भीतर किसी भी क्षेत्राधिकार के न्यायालय में पेश करना अनिवार्य होता है।
    आप पुलिस से अपनी एफआईआर की एक प्रति मांग सकते हैं। एफआईआर लेकर सबसे पहले उस घटना का विवरण, किन धाराओं में आपको निरूद्ध (बंधक) किया गया है अपराध की सूचना देने वाला कौन व्यक्ति है यह सब जानना आपके लिए ज़रूरी है।
    पुलिस गिरफ्तारी के बाद बंदी व्यक्ति स्वयं अपनी जमानत याचिका लगा सकता है। आरोपी को सबसे पहले एफआईआर से यह मालूम करना होगा कि किन धाराओं एवं अधिनियम के अंतर्गत उस पर प्रकरण दर्ज हुआ है तथा वह अपराध जमानतीय है या गैरजमानतीय है।
    जमानती अपराध में मजिस्ट्रेट एवं पुलिस द्वारा जमानत दे दी जाती है पर गैरजमानती अपराध में जमानत देना न देना न्यायालय पर निर्भर होता है।
    न्यायालय से आप यह निवेदन कर सकते है कि पुलिस द्वारा आपको जमानत याचिका दाखिल करने के लिए थोड़ा समय दिया जाए । बाजार,कोर्ट परिसर एवं विधि सम्बन्धी दस्तावेज रखने वाली समस्त जगहो पर सभी अभिवचनों के फॉर्मेट आसानी से उपलब्ध रहते हैं आप उन अभिवचनों को खरीद कर न्यायालय में अपनी जमानत की याचिका लगा सकते है । याचिका बनाकर कोर्ट बाबू को दी जाती है, फिर मजिस्ट्रेट उस पर उचित संज्ञान लेते है। उपर्युक्त समस्त दिशा निर्देशों को यदि आप बखूबी समझकर निभा लेते है तो आपको उचित जानकारी एवं संज्ञान के साथ न्याय ज़रूर मिलेगा।
सिविल मामले में-
     सिविल मामले में अपना मुकदमा स्वयं लड़ना थोड़ा सरल होता है, किसी भी सिविल मुकदमें में यदि आपको स्वयं मुकदमा लड़ना है तो सिविल प्रक्रिया सहिंता अच्छे से समझिए एवं यह देखिए कि आपके किस अधिकार का अतिक्रमण किया जा रहा है तथा वह अधिकार किस अधिनियम के अंतर्गत आता है। सिविल मामले की समस्त कार्यवाही सी पी सी के अंतर्गत ही कि संचालित की जाती है।
    बिना वकील के आप खुद भी लड़ सकते हैं अपना मुकदमा, यह है प्रक्रिया Shadab Salim12 Dec 2019 7:45 AM 832 SHARES FacebookTwitterWhatsAppLinkedIn्यों जब कोई व्यक्ति समस्याओं से घिर जाता है तो उसे न्यायालय से ही उम्मीद रहती है। वकीलों की बेतहाशा फीस के कारण आदमी अपने किसी भी मामले को न्यायालय में ले जाने से डरता है, लेकिन कानून में इतनी गुंजाइश है कि आप न्यायालय की अनुमति से अपना केस खुद लड़ सकते हैं। अधिवक्ता अधिनियम के अंतर्गत आप बगैर अधिवक्ता हुए विधि व्यवसाय नहीं कर सकते परंतु स्वयं का मुकदमा लड़ सकते हैं, यह आपका नैसर्गिक अधिकार है। न्यायालय आपको अपना मुकदमा लड़ने से कतई निषिद्ध नहीं कर सकता। 
     किसी भी कोर्ट केस में कॉल डिटेल की क्या भूमिका होती है आप न्यायालय में वक़ील स्वयं की इच्छा से नियुक्त करते हैं तथा मुकदमे के लिए वक़ील पत्र पर हस्ताक्षर करके वकील को अपने मुकदमे में प्रत्येक प्रकार के अधिकार सौंपते हैं। वकालत है चुनौतीपूर्ण पेशा, जानिए सफल वकील बनने के आवश्यक गुण कभी कभी जीवन में ऐसी परिस्थितियों का जन्म होता है जब आप को किसी आपराधिक मामलों में आरोपी बना दिया जाएं और राज्य द्वारा न्यायालय में आप पर कोई अभियोजन चलाया जा रहा है या फिर आपके किसी अधिकार के अतिक्रमण होने पर आप कोई सिविल मामला लेकर न्यायालय की शरण में जाते हैं। इनमें हर परिस्थिति में आपको वक़ील नियुक्त करने की आवश्यकता नहीं है, न्यायालय आपको वक़ील नियुक्त करने हेतु विवश नहीं करता। वक़ील आपकी सुविधा के लिए आप खुद नियुक्त करते हैं। 
आईपीसी धारा 324: 
    जमानती अपराध और समाधेय (Compoundable) अपराध भारतीय न्याय व्यवस्था बेहद तकनीकी है, जहां आपको पग पग पर वैधानिक जानकारियों की आवश्यकता होती है। इस परेशानी से व्यथित न हों, इसलिए आप न्यायालय में पैरवी के लिए वक़ील नियुक्त करते हैं। आज हम चर्चा करेंगे उन बिंदुओं पर जिनकी सहायता से आप स्वयं भी खुद के मुकदमे में पैरवी कर सकते हैं। हालांकि यह बिंदु नितांत सटीक तो नहीं परन्तु फिर भी आपको स्वयं का मुकदमा लड़ने में ज़रूर सहायता करेंगे। आपको अपना मुकदमा लड़ने के लिए केवल थोड़ा बहुत सामाजिक जानकारियों और साधारण तर्क पर ज्ञान हो और साथ ही कम से कम हिंदी भाषा में आप निपुण हों, ताकि अपनी बात को भाषा की सहायता से प्रभावी बना सकें। आइए जनाते हैं, क्या हैं वे बिंदु? Also Read - 127 मृत, 250 घायल- हमारे न्यायालयों की सुरक्षा के लिए एक मामला बेयर एक्ट ख़रीदें- किसी भी अधिनियम पर बाज़ार में अलग अलग प्रकाशन संस्थाएं बेयर एक्ट प्रकाशित करती हैं। इनकी कीमत नाममात्र की होती है। आप बाज़ार से इन बेयर एक्ट को खरीद सकते हैं। इनकी भाषा भी कोई गूढ़ गहन नहीं होती है, परंतु उस ही शब्द को उपयोग किया जाता है जिस शब्द को विधायिका ने प्रयोग किया है। आपराधिक मामले में- यदि आप पर किसी आपराधिक मामले का अभियोजन चल रहा है तो आप सर्वप्रथम तीन अधिनियम की बेयर एक्ट खरीदें। 
    क्रिमिनल ट्रायल में बाल गवाह की गवाही पर क्या है विस्तृत दृष्टिकोण भारतीय दंड संहिता 1860 दंड प्रक्रिया सहिंता 1973 भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 भारतीय दंड सहिंता भारत की सीमा में अपराधों का निर्धारण करती है और उनके लिए दंड बताती है। दंड प्रक्रिया सहिंता उन अपराधों में किस प्रकिया से व्यक्ति को दंड तक ले जाया जाएगा, इसका निर्धारण करती है। साक्ष्य अधिनियम यह तय करता है कि किन साक्ष्यों को प्रकिया में शामिल किया जाएगा तथा कौन से एविडेन्स पर आरोपी को सज़ा दी जा सकती है। यह तीनों अधिनियम किसी भी आपराधिक मामले में महत्वपूर्ण भूमिका रखते हैं। सारा मुकदमा इन तीनों के आधार पर ही पर ही संचालित किया जाता है। न्यायाधीश से आज्ञा लेना- आप न्यायाधीश से आज्ञा लेकर ही स्वयं के मुकदमे में स्वयं पैरवी कर सकते हैं, परन्तु न्यायाधीश आपको वकील नियुक्त करने का परामर्श दे सकते हैं। इस पर आप कह सकते हैं कि पुलिस कार्यवाही में मुझे खुद ही पैरवी करने की अनुमति दें तथा इतना समय दें कि मैं ड्राफ्टिंग इत्यादि कर सकूं। अगर आप निरुद्ध हैं तो- यदि आप किसी आपराधिक मामले में पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए हैं और पुलिस ने आपको बंदी बनाया हुआ है। संविधान के अनुच्छेद 22 के अंतर्गत पुलिस को आपको गिरफ्तार करने के चौबीस घंटों के भीतर किसी भी क्षेत्राधिकार के न्यायालय में पेश करना होगा। जब आपको न्यायालय में पेश किया जाए तो आप पुलिस से अपनी एफआईआर की एक प्रति मांग सकते हैं। एफआईआर लेकर सबसे पहले उस घटना का विवरण पढ़ें फिर किन धाराओं में आपको निरूद्ध किया गया है यह जानकारी देखें तथा अपराध की सूचना देने वाला कौन व्यक्ति है यह नाम देखें। पुलिस की गिरफ्तारी के बाद बंदी व्यक्ति स्वयं अपनी जमानत याचिका लगा सकता है। आरोपी को सबसे पहले एफआईआर से यह मालूम करना होगा कि किन धाराओं तथा अधिनियम के अंतर्गत मुझ पर प्रकरण दर्ज किया गया है तथा वह अपराध जमानतीय है या गैरजमानती है। जमानती अपराध में मजिस्ट्रेट और पुलिस द्वारा जमानत दे दी जाती है पर गैरजमानती अपराध की सूरत में जमानत देने या नहीं देना न्यायलय के विवेक पर निर्भर करता है। न्यायालय से यह निवेदन करें कि पुलिस मुझे जमानत याचिका दाखिल करने के लिए थोड़ा समय दे। बाजार में सभी अभिवचनों के फॉर्मेट उपलब्ध होते हैं आप उन अभिवचनों को खरीद कर न्यायालय में अपनी जमानत याचिका लगा दें। याचिका बनाकर कोर्ट बाबू को दी जा सकती है, फिर मजिस्ट्रेट उस पर संज्ञान लेंगे। यदि न्यायालय आपको जमानत पर छोड़ देता है तो किसी जमानतदार के सहयोग से आप पुलिस निरूद्ध से बाहर हो सकते हैं। पुलिस निरूद्ध से बाहर होकर आप उन धाराओं, उन अधिनियम को पढ़ें जिनके अन्तर्गत आपको आरोपी बनाया गया है। विचारण के दरमियान- जब आप पर आरोप तय हो जाएं और पुलिस द्वारा अपना अंतिम प्रतिवेदन (चालान) प्रस्तुत कर दिया जाए तो आप गवाहों का प्रतिपरीक्षण कीजिए। आपको न्यायलय के नकल विभाग में एक एप्लिकेशन लगाने पर बोर्ड पर रखी आपके मुकदमे को फाइल में लगे पुलिस के पेश किए चालान की नकल की सत्यप्रतिलिपि प्राप्त हो जाएगी। चालान को अच्छे से पढ़ना- चालान की नकल मिलने पर आप चालान को अच्छे से पढ़िए तथा किन किन गवाहों ने क्या क्या कथन किया है। इस पर मंथन कीजिए तथा ऐसे तर्क को जन्म दीजिए, जिससे आप गवाहों के दिये कथन को अपने विरुद्ध दिए कथन को अपने पक्ष में कर लें तथा अपने खिलाफ गए गवाहों को झूठा सिद्ध कर सकें। सिविल मामले में- सिविल मामले में अपना मुकदमा स्वयं लड़ना अपेक्षाकृत थोड़ा सरल होता है, क्योंकि यहां हमारे पास समय रहता है तथा हम पुलिस द्वारा निरूद्ध नहीं होते हैं। किसी भी सिविल मुकदमों में यदि आपको स्वयं मुकदमा लड़ना है तो सिविल प्रक्रिया सहिंता अच्छे से समझिए और यह देखिए कि आपके किस अधिकार का अतिक्रमण हो रहा है और वह अधिकार किस अधिनियम के अंतर्गत आ रहा है। जैसे अगर कोई संविदा विधि से संबंधित मामला है तो सबसे पहले भारतीय संविदा अधिनियम देखें। कोई मामला राजस्व से संबंधित है तो अपने प्रदेश का राजस्व अधिनियम या कोड देखिए और उस पर गहन शोध करें। मामले की समस्त कार्यवाही सी पी सी के अंतर्गत ही कि संचालित की जाती है। जहां तक संभव हो वहां तक आप अपने मुकदमे के लिए वकील नियुक्त करने का प्रयास करें क्योंकि वकील आपके महत्वपूर्ण मुकदमे में ठीक पैरवी कर सकते हैं। अपना केस खुद लड़ने का विकल्प आपातकालीन या फिर आर्थिक तंगी में प्रयोग किया जा सकता है लेकिन प्रयास करना चाहिए कि आपका मुकदमा कोई वकील ही देखे, क्योंकि यह संभव है सामने वाले पक्षकार द्वारा कोई वकील पैरवी के लिए खड़ा किया जाए।

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