हुदा मुथाना वह अमेरिकी लड़की जिसने इस्लामिक स्टेट की सदस्यता ली थी। पहले एक ट्वीट की बयानी सुनिए, साल 2015 ‘अमेरिका के लोगों, तुम आतंक के साये में जीने के ही लायक हो। जब तक तुम शरिया लागू नहीं करते, हम तुम्हें आतंकित करते रहेंगे। हर हॉलिडे परेड पर हमला करो। उनका ख़ून बहा दो या एक बड़ा ट्रक किराए पर लेकर उनके ऊपर चढ़ा दो। उनकी हत्या कर दो।’
कट टू 2019 जनवरी का महीना ‘जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं, मुझे ये सब पागलपन लगता है। मैं इस पर यकीन नहीं कर पाती। मैंने अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर ली। मैं वापस अपने देश लौटना चाहती हूं। भले ही मुझे जेल हो जाए, लेकिन मैं अमेरिका में रहना पसंद करूंगी।’
इंसान एक लेकिन बयान दो, नाम "हुदा मुथाना"। कॉलेज में पढ़ने वाली एक अमेरिकी लड़की, जिसने पहले तो सीरिया जाकर आतंकी संगठन ‘इस्लामिक स्टेट’ यानी आइएस की सदस्यता ली। फिर ट्विटर के जरिए अमेरिका पर हमले की बहुत सारी धमकियां जारी की। अमेरिकन मुस्लिमों को जिहाद के लिए उकसाया भी।
चार साल के अंतराल में ऐसा क्या हुआ कि उसके सुर अचानक से बदल गए? हुदा मुथाना का इस्लामिक स्टेट से मोहभंग क्यों हुआ? उसने आइएस को लेकर कौन-से चौंकाने वाले खुलासे किए? और, आज हम हुदा मुथाना की कहानी क्यों बयां कर रहे हैं? सब विस्तार से बताएंगे।
हुदा मुथाना ने ट्विटर के जरिए अमेरिका पर हमले की बहुत सारी धमकियां जारी की थी।
अलाबामा टू इस्लामिक स्टेट वाया कॉलेज ट्रिप
अमेरिका के दक्षिणी राज्य अलाबामा में एक प्यारा शहर है – बर्मिंघम। यूनिवर्सिटी ऑफ़ अलाबामा का कैंपस इसी शहर में है। एक शर्मीली-सी लड़की हुदा मुथाना इसी यूनिवर्सिटी में बिजनेस की पढ़ाई कर रही थी। उम्र 20 साल, उसके सपने खूब सारे थे लेकिन दोस्त गिनती के।
अकेलेपन से उबकर उसने सोशल मीडिया का दामन थामा। ये एक अथाह दलदल में गिरने की शुरुआत थी। जिससे वो कभी उबर नहीं पाई। उसने देखा था कि सोशल मीडिया पर फ़ेमस होने के लिए कट्टर बनना होगा। उसने वैसा ही किया और फ़ॉलोअर्स की संख्या बढ़ती गई। अब उसके पास ज़्यादा दोस्त थे। वो पॉपुलर हो रही थी, इसी क्रम में वो आइएस की नज़र में आ गई।
आइएस के रिक्रूटर्स चौबीसों घंटे सोशल मीडिया पर नज़र रखते थे। जहां तनिक-सी भी संभावना दिखती, वे डोरे डालना शुरू कर देते थे। उन्होंने हुदा से भी संपर्क साधा। कई महीनों तक मेसेज बॉक्स में बात चली। इस दौरान कई प्रोपेगैंडा वीडियोज़ दिखाए गए। खूब सारे सपनीले वादे किए गए। कहा गया कि तुम्हें अस्पतालों और स्कूलों में लोगों की मदद करनी होगी। ये एक ऐसी जगह है, जहां असली मुस्लिम रहते हैं। यहां अल्लाह का वास है। अल्लाह तुम्हें जन्नत अता करेंगे।
लाल घेरे में दक्षिणी अमेरिका राज्य अलाबामा का शहर बर्मिंघम
हुदा इस बहकावे में आ गई। उसने सीरिया जाने का प्लान बना लिया। कई महीनों की प्लानिंग हुई, नवंबर 2014 की बात है, हुदा ने अपने घरवालों से कहा कि वो कॉलेज ट्रिप के लिए अटलांटा जा रही है। कुछ दिनों तक उससे कॉन्टैक्ट न करें, परिवार ने भी हामी भर दी। लेकिन कॉलेज ट्रिप तो घर से निकलने का बहाना मात्र था, वो अलाबामा से उड़कर तुर्की पहुंची। वापस घर आने की बजाय वो बॉर्डर पार कर सीरिया चली गई।
2014 के साल में आइएस सीरिया में अपनी जड़ें जमा रहा था। रक़्क़ा शहर को उसने अपनी राजधानी घोषित कर दिया था। हुदा मुथाना को भी रक़्क़ा लाया गया, यहां उसे एक कैंप में एंट्री मिली। इस कैंप में अविवाहित महिलाओं को बंद कर रखा गया था। वे आइएस के आतंकियों के दिल बहलाने का सामान भर थीं। जैसे-जैसे आइएस का प्रभाव बढ़ रहा था, उसी अनुपात में नए लड़ाकों की दरकार भी बढ़ रही थी। उधर कैंप में बंद लड़कियों का लालच देकर नौजवान लड़कों को आइएस में शामिल किया जा रहा था।
हुदा IS से क्यों भागी?
कैंप से निकलने का एकमात्र रास्ता था कि वो किसी जिहादी से शादी कर ले। 20 दिसंबर 2014 को हुदा ने ऑस्ट्रेलिया से सीरिया आए सुहान अब्दुल रहमान से निक़ाह कर लिया। तीन महीने बाद एक हवाई हमले में अब्दुल रहमान की मौत हो गई। इस घटना के बाद हुदा ने ट्विटर पर बहुत सारा ज़हर उगला। उसने अमेरिका में रह रहे मुस्लिमों के लिए लिखा कि "अब जागने का समय आ गया है। क़ाफ़िर जहां भी दिखें, उन्हें जान से मार दो।"
पहले पति की मौत के कुछ महीनों बाद हुदा ने दूसरी शादी कर ली। उसका दूसरा पति ट्यूनीशिया का था। मई 2017 में हुदा को एक बेटा हुआ। तब तक उसके दूसरे पति की भी मौत हो चुकी थी। हुदा ने तीसरी शादी भी की, लेकिन वो ज़्यादा दिनों तक नहीं चल पाई।
20 दिसंबर 2014 को हुदा ने ऑस्ट्रेलिया से सीरिया आए सुहान अब्दुल रहमान से निक़ाह किया था। उस समय तक इस्लामिक स्टेट पतन की राह पर था। 20 अक्टूबर 2017 को रक़्क़ा आइएस के चंगुल से आज़ाद हो गया। सीरिया की सेना आतंकियों को खोजकर मार रही थी। उनसे बचने के लिए हुदा मुथाना ने भागना शुरू किया। अपने बच्चे के साथ, हालात इतने ख़राब थे कि उसे अपने नवजात बेटे को घास खिलाकर ज़िंदा रखना पड़ा।
नवंबर 2018 में हुदा ने फ़्लोरिडा में एक वकील से संपर्क किया। उसने बताया कि वो वापस अमेरिका लौटना चाहती है। हुदा ने दरख़्वास्त करते हुए कहा कि मेरा भविष्य तो बर्बाद हो चुका, लेकिन मैं अपने बच्चे की ज़िंदगी बचाना चाहती हूं।
बात आगे बढ़ती, उससे पहले ही कुर्द सेना ने उसको अरेस्ट कर लिया। हुदा को उसके बच्चे के साथ कैंप रोज में रखा गया। फिलहाल, इस रेफ़्यूजी कैंप में पश्चिमी देशों से आई 15 सौ से अधिक महिलाएं रह रहीं है। ये सब इस्लामिक स्टेट की लड़ाई में हिस्सा लेने आईं थी। उन्हें बहला-फुसलाकर सीरिया बुलाया गया था। वहां उनका भयानक शारीरिक और मानसिक शोषण हुआ और फिर उन्हें दुत्कार कर छोड़ दिया गया। इन महिलाओं के ऊपर कभी कोई मुकदमा नहीं चला। लेकिन उन्हें बाहर जाने की मनाही है। उनका भविष्य उनके देश की सरकारों पर टिका है, उन्हें नाम दिया गया, ‘आइएस ब्राइड्स’ यानी आइएस की बेगमें.
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप
हुदा मुथाना अमेरिका नहीं लौट सकती?
हुदा मुथाना कैंप रोज में बंद इकलौती अमेरिकी महिला है। उसके भविष्य पर फ़ैसला अमेरिकी सरकार को लेना था, 20 फ़रवरी 2019 को उस समय के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्वीट किया "मैंने विदेश मंत्री माइक पोम्पियो को कहा है कि वो हुदा मुथाना को अमेरिका में घुसने की अनुमति न दें. पोम्पियो मेरी बात से पूरी तरह सहमत हैं".
कुछ समय बाद पोम्पियो का बयान भी आ गया "हुदा मुथाना एक आतंकी है। उसने अमेरिकी सैनिकों और नागरिकों की जान खतरे में डाली है, वो अमेरिका की नागरिक भी नहीं है। उसे यहां आने की अनुमति नहीं दी जाएगी।"
हुदा का जन्म अमेरिका के न्यू जर्सी में हुआ था, उसकी परवरिश अलाबामा में हुई थी। फिर सरकार उसकी नागरिकता से मना क्यों कर रही थी? हुदा मुथाना के पिता यमन के रहने वाले थे। यूनाइटेड नेशंस की नौकरी के सिलसिले में वो अमेरिका आए थे, 1990 के साल में जब यमन सिविल वॉर की आशंका से जूझ रहा था। इसलिए उन्होंने अमेरिका में ही बसने का फ़ैसला कर लिया। बाद में उन्हें अमेरिका की नागरिकता भी मिल गई, लेकिन हुदा की नागरिकता में पेंच फंस गया।
पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो
माइक पोम्पियो ने कहा कि हुदा का पासपोर्ट ग़लती से जारी हो गया था। उसके घरवालों ने सरकार के ख़िलाफ़ मुकदमा दायर कर दिया। इस केस का फ़ैसला आया, नवंबर 2019 में, जज ने अपने आदेश में कहा कि "हुदा मुथाना अमेरिकी नागरिक नहीं है। जज ने कहा कि "हुदा के जन्म के समय उसके पिता यमन के डिप्लोमैट थे, इसलिए उसे अमेरिकी नागरिक नहीं माना जा सकता।"
इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ की गई अपील जनवरी 2021 में खारिज कर दी गई। अब हुदा मुथाना का परिवार सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रहा है।
हम हुदा मुथाना की कहानी क्यों सुना रहे हैं?
दरअसल, एक नई डॉक्यूमेंट्री आई है। ‘द रिटर्न: लाइफ़ आफ़्टर आइएसआइएस’ इसे डायरेक्ट किया है, स्पेनिश फ़िल्मकार एल्बा सोतोरा ने। इसमें हुदा मुथाना और उसके जैसी सैकड़ों महिलाओं की कहानी बयान की गई है, जो इस्लामिक स्टेट के प्रोपेगैंडा का शिकार हुईं और अब कैंप रोज में अपनी ज़िंदगी काट रहीं है। द रिटर्न में हुदा मुथाना और उसके जैसी सैकड़ों महिलाओं की कहानी बयान की गई है.
डॉक्यूमेंट्री के लिए एल्बा ने एक साल का वक़्त लिया. इस दौरान उन्होंने कैंप रोज की महिलाओं के साथ लंबा वक़्त गुजारा। हुदा इस कहानी की मुख्य किरदारों में से एक है। द रिटर्न: लाइफ़ आफ़्टर आइएसआइएस को डायरेक्ट किया है स्पेनिश फ़िल्मकार एल्बा सोतोरा ने।
इस डॉक्यूमेंट्री से और क्या-क्या पता चला है?
हुदा ने बताया कि उसकी अपने मां के साथ नहीं बनती थी। वो उसकी अरेंज्ड मैरेज करवाने का मन बना चुकीं थी। इसलिए उसके पास सोचने का ज़्यादा वक़्त नहीं था। उसके ऊपर हर समय पहरा रखा जाता था, किससे बात करती है, किससे मिलती है, कहां जाती है? इस वजह से हुदा का कोई दोस्त भी नहीं बना।
जब उसके पास मोबाइल आया, तो खुला संसार मिल गया। वहां से उसे सीरिया जाने का रास्ता मिला, वो गई भी एक अलग दुनिया की चाहत में। लेकिन वहां की दुनिया कुछ और ही थी। डॉक्यूमेंट्री में महिलाओं ने जो अनुभव साझा किए हैं, उसके मुताबिक, वो जगह नर्क़ से भी बदतर थी।
– इस्लामिक स्टेट महिलाओं को बार-बार शादी करने के लिए मज़बूर करता था। अगर एक जिहादी की मौत हो गई, तो उसकी पत्नी की शादी किसी दूसरे के साथ करा दी जाती थी। वह भी महिला की इच्छा के बिना।
– आइएस के कब्ज़े वाले इलाकों में हमेशा मोरल पुलिसिंग हुआ करती थी। अगर कोई महिला गुलाबी रंग की जूतियां पहन लेती तो उसे सरेराह मारा-पीटा जाता था। अगर बैग से पैसे निकालते वक़्त किसी का हाथ दिख जाता तो उसे कोड़ों से मारा जाता था।
– बलात्कार और हत्या की कहानियां आम थीं। महिलाओं को खिलौना बनाकर रखा गया था। गर्भ से होने पर ज़बरदस्ती गर्भपात करा दिया जाता था।
हुदा मुथाना अफ़सोस करते हुए कहती है, ‘अगर मेरे पास ट्विटर न होता तो मैं कभी इस हालत में नहीं पहुंचती।’
शमीमा बेग़म की कहानी
हुदा मुथाना के टेंट में कुछ दिनों तक शमीमा बेग़म भी रही थी। वो 2015 में ब्रिटेन से भागकर रक़्क़ा पहुंची थी। उस वक़्त शमीमा की उम्र केवल 15 साल थी, जब शमीमा को गिरफ़्तार किया गया, उस वक़्त वो नौ महीने की प्रेग्नेंट थी। उसका बच्चा पैदा होने के तीन हफ़्ते बाद ही मर गया। शमीमा अभी भी कैंप रोज में बंद है. मार्च 2021 में ब्रिटेन की सर्वोच्च अदालत ने उसकी ब्रिटिश नागरिकता रद्द कर दी।
शमीमा बेग़म
हुदा मुथाना और शमीमा सरीखी सैकड़ों महिलाओं को उम्मीद है कि इस डॉक्यूमेंट्री को देखने के बाद सरकारों का दिल पिघलेगा। सरकारें उनके बच्चों की परवाह करेंगी, हालांकि, इसकी उम्मीद कम ही दिखाई देती है।
इन महिलाओं की वतन-वापसी के विरोधियों का तर्क़ है कि उन्होंने जो भी फ़ैसला लिया था, सोच-समझकर लिया था। उन्हें वापस बुलाने का मतलब आतंकवाद को शह देने के बराबर है। जबकि, समर्थकों का कहना है कि इन महिलाओं को कच्ची उम्र में बरगलाया गया था। उन्हें दूसरा मौका दिया जाना चाहिए, ये बहस लंबी खिंचती रहेगी।
इन सबके बीच जो चीज़ दिल तोड़ने वाली है। वो ये कि उन मासूम बच्चों का दोष क्या है? उन्हें ये सब क्यों भुगतना पड़ रहा है? इसका सटीक जवाब शायद ही किसी सरकार के पास उपलब्ध होगा?