प्रो. केएस गुप्ता स्मृति व्याख्यानमाला में भारतीय ज्ञान परम्परा में इतिहास बोध पर हुई चर्चा
उदयपुर/राजस्थान।। भारत की क्षेत्रीय, आंचलिक लोक परम्पराओं में न केवल भारतीय इतिहास परिलक्षित होता है, अपितु भारतीय सभ्यता की प्रकृति मित्र संस्कृति का भी बोध होता है। इन्हीं परम्पराओं में विज्ञान भी छिपा है। इन लोक परम्पराओं को समझकर उन्हें संजोने की आवश्यकता है।
यह आह्वान नई दिल्ली के बीआर आम्बेडकर विश्वविद्यालय के वरिष्ठ इतिहासविद प्रो. आनंदवर्धन ने गुरुवार को यहां प्रताप गौरव केन्द्र ‘राष्ट्रीय तीर्थ’ में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति उदयपुर की ओर से आयोजित प्रो. केएस गुप्ता स्मृति व्याख्यानमाला में किया। ‘भारतीय ज्ञान परम्परा में इतिहास बोध’ विषय पर आयोजित व्याख्यानमाला में उन्होंने युवा पीढ़ी से आह्वान किया कि वे अपनी क्षेत्रीय लोक परम्पराओं के साथ वनवासी बंधुओं की स्मृतियों और परम्पराओं में शामिल लोक इतिहास और प्रकृति विज्ञान को समझने का प्रयास करें और उन्हें संजोएं।
उन्होंने कहा कि औपनिवेशिक काल के इतिहास लेखन ने यह हमारे मस्तिष्क में भरने की कोशिश की कि भारतीयों में इतिहास बोध नहीं है, इतिहास की दृष्टि नहीं है, जो भी भारतीय ग्रंथों में लिखा गया है वह मिथक है, काल्पनिक है। उस समय के इतिहास लेखन ने यूरोप को ही इतिहास विधा का जनक स्थापित करने का भरसक प्रयत्न किया। इसी तरह, मध्यकाल की बात की जाए तो उस समय दरबारी इतिहास लेखक थे जिन्होंने संकीर्ण दृष्टि से इतिहास लिखा। औपनिवेशिक काल के इतिहास लिखने वालों ने मध्यकाल के कुछ अर्थशास्त्रीय आंकड़ों और कुछ घटनाक्रमों का उपयोग अपने लेखन में जरूर किया। इसके बाद कनिंघम, टॉड जैसे लेखकों ने भारतीय इतिहास की खोज का एक उपक्रम स्थापित किया और अपने तरीके से इतिहास लिखा जबकि वे इतिहासकार नहीं थे। प्रो. आनंदवर्धन ने बताया कि स्वयं कार्लमार्क्स ने लिखा है कि भारत का कोई इतिहास नहीं है, जो लिखा गया है वह विदेशी आक्रमणकारियों का है।
प्रो. आनंदवर्धन ने कहा कि आज जब हमारे पास संसाधन है, एक स्वतंत्र चिंतन है, तब हमें भारतीय इतिहास की दृष्टि को पूरी दुनिया के समक्ष लाने का प्रयास करना है। भारतीय इतिहास की दृष्टि नारांससि अर्थात नर के द्वारा नर की हत्या की घटनाओं पर आधारित न होकर समग्र समाज की स्थिति पर आधारित रही है। भारत की इतिहास दृष्टि राष्ट्र व समाज के सापेक्ष रही है। मनुष्य की गुणता पर आधारित रही है। कथोपकथन व आख्यायिकाओं को इतिहास नहीं माना जा सकता है, अपितु इतिहास को शिक्षाप्रद होना चाहिए, ऐसी भारतीय दृष्टि रही है। उन्होंने कहा कि महाभारत जैसा ग्रंथ तत्कालीन सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक स्थिति को समग्रता से समझा जा सकने वाला लेखन ही नहीं है, बल्कि विभिन्न परिस्थितियों में निर्णय की क्षमता का निर्माण करने वाला ग्रंथ भी है। भगवद गीता सभी पुराणों में वर्णित शिक्षा का सारगर्भित स्वरूप है।
प्रो. आनंदवर्धन ने कहा कि तंजावुर के वृद्धीश्वर मंदिर की पट्टिकाओं पर जो वर्णन उत्कीर्ण है, वह हमारा ऐतिहासिक वैभव है। राजसमंद झील पर राजप्रशस्ति भी इसी तरह का प्रामाणिक इतिहास है, जिन्हें विदेशी लेखकों ने कभी महत्व नहीं दिया। उन्होंने यह भी कहा कि अभिलेख शास्त्र आधारित इतिहास के साथ हमारे पुराण भी इतिहास के स्रोत हैं। नीलमत पुराण, एकलिंग पुराण, जैन पुराण आदि भी तत्कालीन सामाजिक जीवन सहित सभी तरह की परिस्थितियों व प्रबंधन का उल्लेख करते हैं। भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में ऐसे ही ग्रंथ जो लोकमानस में प्रचलित हैं, उनके अध्ययन में भी सामने आएगा कि भारतीय ज्ञान में इतिहास की दृष्टि कितनी गहन और पूरे विश्व में सर्वोपरि है। लोकजनमानस में शामिल स्मृतियां और श्रुतियां भी इतिहास में महत्वपूर्ण हैं।
प्रो. आनंदवर्धन ने कहा कि वामपंथी इतिहासकार कहे जाने वाले आरएस शर्मा ने भी अपनी आखिरी पुस्तक ‘री-थिंकिंग एनशिएंट इंडिया’ में स्वयं लिखा है, ‘‘हिन्दू रीति, रिवाज, कर्मकाण्ड, परम्पराएं प्राचीन इतिहास को देखने का द्वार खोलती हैं।’’ प्रो. आनंदवर्धन ने कहा कि हमें इसी दृष्टि को लेकर कार्य करना होगा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति कर्नल प्रो. एसएस सारंगदेवोत ने भारतीय इतिहास के पुनर्लेखन की आवश्यकता बताते हुए तत्समय के संदर्भ में उपलब्ध भारतीय स्रोतों, लोक संग्रह, जनमानस, विश्वकोश में उपलब्ध स्रोतों व जानकारी के पारस्परिक अध्ययन की प्रक्रिया को अपनाने पर बल दिया।
इससे पूर्व, कार्यक्रम का आरंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। प्रताप गौरव केन्द्र राष्ट्रीय तीर्थ के निदेशक अनुराग सक्सेना ने व्याख्यानमाला की भूमिका व आवश्यकता पर प्रकाश डाला। अतिथियों का स्वागत वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति उदयपुर के उपाध्यक्ष मदन मोहन टांक ने किया। प्रो. मीना गौड़ ने स्मृति शेष स्व. प्रो. केएस गुप्ता के जीवनवृत्त पर प्रकाश डाला। आभार प्रदर्शन मनीष श्रीमाली ने किया और संचालन विवेक भटनागर ने किया।