गुजरात के गिर के जंगलों का नाम तो आपने सुना ही होगा, अरे वही जहां बब्बर शेर अपने परिवारों के साथ रहते हैं। उसी जंगल मेें रहने वाला भारत का एक अकेला वोटर ऐसा है जिसके एक वोट के लिए चुनाव आयोग को कर्मचारियों की पूरी टीम वहा भेजनी पड़ती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा क्योंकि उसकी मृत्यु हो गई है। शेरों और अन्य खूंखार जंगली जानवरों से भरे गिर के जंगलों में स्थित महाभारतकालीन स्थल बाणेज में स्थित शिव मंदिर के महंत और वहां 2007 से हर साल बनने वाले मतदान केंद्र के इकलौते मतदाता महंत भरतदास दर्शनदास का कुछ समय पूर्व निधन हो गया है। बताया जाता है की वह 68 साल के थे।
धूप का काला चश्मा पहने महंत की वेशभूषा में मतदान के बाद हर साल ऊंगली दिखाते हुए सुर्खियों में रहने वाले भरतदास की तस्वीर को निर्वाचन आयोग ने अपनी वेबसाइट पर भी जगह दी थी। लोकतंत्र में एक-एक वोट की कीमत का महत्व बताने के लिए उनके बूथ का वर्णन भी वेबसाइट पर था। वह हर चुनाव में नियमित और निश्चित तौर पर मतदान करते थे।
उनके गुरूभाई महंत हरिदास दर्शनदास बापू (39) ने बताया कि मूल रूप से राजस्थान के पाली के रहने वाले भरतदास पिछले काफी समय से मधुमेह, उक्त रक्तचाप समेत कई तरह की बीमारियों से पीड़ित थे और कुछ समय से उनके दोनो गुर्दे भी बेकार हो गये थे। उन्हें जामनगर रोड स्थित एक अस्पताल मेें भर्ती कराया गया था जहाँ दोपहर बाद तीन बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। अब वह उनके उत्तराधिकारी होंगे और वाणेज के शिव मंदिर में रहेंगे पर अभी यह तय नहीं है कि वह वहां के वोटर होंगे या नहीं।
ऐसा माना जाता है कि पूर्ववर्ती जूनागढ़ और अब गिर सोमनाथ जिले में स्थित बाणेज ही वह जगह है जहां महाभारत काल के दौरान अज्ञातवास में भटक रहे पांडवों में से अर्जुन ने अपनी माता कुंती को प्यास लगने पर तीर (बाण) से जमीन में छेद कर पानी निकाला था। एशियाई शेरों के एकमात्र निवास गिर के वनों में स्थित इस मंदिर में रात में श्रद्धालु को जाने की इजाजत नही है। भरतदास ने आखिरी बार गत 23 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दौरान मतदान किया था। उनके इकलौते वोट के लिए चुनाव आयोग वहां आठ मतदानकर्मियों की टीम को 55 किमी का रास्ता तय कर हर बार भेजता था।