भरतपुर जाट किंगडम एक विद्रोह किसानों का जो एक शक्तिशाली राज्य में बदल गया
क्या यह बात सच है कि जाटों ने मुगल बादशाह अकबर की कब्र खोदकर उसमे आग लगा दी थी? हां ये बात सच है की जाटो ने स्थानीय गाँव वालों के साथ मिलकर औरंगजेब के समय आगरा को घेर लिया था और मुगल बादशाह अकबर के मकबरे पर हमला कर उसकी कब्र खोदकर उसको आग के हवाले कर दिया था।
यानी अब सिंकदरा (आगरा के पास) अकबर के मकबरे में कोई अकबर की लाश नही है, उसको उसके कुकर्मो की सजा जाटो द्वारा दी जा चुकी है।
क्या कारण था इतने गुस्से का
अकबर की इस दुर्गति का एक कारण नहीं था काफी सारे कारण थे इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है की उसने हिंदुओ से जजिया कर लिया था और वह भी अपमानित कर के लिया जाता था। हिन्दुओं के मंदिर तोड़ दिए गये, मूर्तिया तोड़ दी गयी और औरंगजेब के समय धर्म परिवर्तन बड़े स्तर पर करवाया जा रहा था।
लेकिन इसी समय एक घटना घटी एक यादव समाज की महिला पर मुगल अधिकारियों द्वारा गन्दी हरकत की गई। इस घटना के बाद जाटो में एकता आई और मुगलों के खिलाफ बगावत शुरू हुई। इसके बाद के समय में अनेक जाट नायक निकल कर सामने आए जिसमे गोकुला, राजा राम, चुरामन और सूरजमल मुख्य थे लेकिन आज बात राजाराम जी की ही की जाती है।
किसने इस घटना को अंजाम दिया था?
ये काम राजा राम जाट ने किया था, मुगलों द्वारा जाट जमीदार गोकुला की हत्या का बदला लेने के लिए सिकंदरा के मकबरे पर हमला बोला गया। उस समय वहा का गवर्नर शायस्ता खान था लेकिन उसको मकबरे पर आने में देरी हो गयी, तब तक राजा राम और गाव के लोगो ने ना सिर्फ अकबर का मकबरा खोद डाला बल्कि उसकी हड्डियों को निकाल कर उसको आग के हवाले कर दिया था।
देखने को ये मामूली घटना लगे लेकिन उस समय औरंगजेब की हिन्दू विरोधी नीतियों के विरुद्ध उसी के राज्य में उसके ही नाक के नीचे इस घटना को अंजाम देकर महाराज राजा राम ने अन्याय के विरोध में आवाज उठाने का साहस लोगो में दे दिया था।
क्यों इस घटना के बारे में नहीं बताया जाता है
दरअसल वामपंथी इतिहासकारो ने जाटो के बारे में चार लाइन से ज्यदा लिखा नहीं है। क्योकि अगर वो लिखते तो मुगलों की पोल खुलती, ऐसे में उन्होंने उन चार लाइनों में भी जाटो को लूटपाट करने वाला बता दिया था।
क्या सच में जाटो ने लूटपाट की थी?
देखिए मामला ऐसा था चाहे महमूद गजनवी हो या पानीपत की तीसरी लड़ाई वाला अब्दाली जाटो ने इनके उपर हमले किये और ये अत्याचारी मुग़ल जो सोना-चांदी भारत से लूट कर ले जा रहे थे उसको उन्होंने छीन लिया था। लेकिन अब वामपंथी जाटो को लिए लूटपाट शब्द इस्तेमाल करते है और इन बाहरी घुसपैठियों को महान बहादुर बताते है जबकि मामला ऐसा है की अगर कोई आप के घर में चोरी कर ले और आप उस पर हमला कर दो और अपना सामन वापस ले लो तो चोर आप हुए की वो जिसने चोरी की है?
यहाँ लूट पात तो गजनवी और अब्दाली ने की थी लेकिन उनको ये लूटेरा नहीं बोलेगे बल्कि जाटो ने तो बस उन लूटेरो से गोरिल्ला युद्ध कर भारत की सम्पत्ति वापस ली थी। क्या पाप कर दिया लूटेरो से देश की सम्पत्ति वापस लेकर जाटो ने? लेकिन वामपंथी इतिहासकारों ने जाटों और भरतपुर के किसान योद्धाओं को लुटेरों के रूप में दिखाया है। जबकि सच ये है की ये लोग विद्रोही थे जो मुगलों के अत्याचार के ख़िलाफ़ अपने खेतों और धर्म की रक्षा के लिए खड़े हुए थे।
चूड़ामण - गोकुल (मध्य) - राजाराम १६६९ का जाट विद्रोह
औरंगज़ेब के तख्त पर आते ही सब बदल गया था। उसकी हिन्दू विरोधी नीतियों ने हिन्दुओं को सोई नीद से जगा दिया। उसने हिन्दुओं के त्योहारों को मनाने पर पाबंदी लगा दी और जजिया कर जैसे टैक्स हिन्दुओं पर थोप दिए थे।
अत्याचारों से पीड़ित लोगों में जाट, यादव जो मथुरा, आगरा और भरतपुर रीजन में थे ने अत्याचारी शासन के खिलाफ एकजुट होना शुरू कर दिया और बहादुर जाट योद्धाओं और किसानों ने गोकुल नाम के जमीदार (जो तिलपत का जमींदार था) के नेतृत्व में तलवार उठा ली और विद्रोह की शुरुआत की।
विद्रोह को दबाने के लिए मथुरा के फौजदार अब्नुल नवी को भेजा गया जो जाटों के हाथों मारा गया और विद्रोह आगरा तक फैल गया। लेकिन अंत में गोकुल को पकड़ लिया गया लेकिन जाट योद्धाओं ने बहुत बहादुरी दिखाई और औरंगज़ेब के सामने झुके नहीं। गोकुल और उसके दो साथियों को सजा दी गई और सजा के रूप में उनके एक एक अंग को काटा गया लेकिन ये बहादुर झुके नहीं।
विद्रोह के बाद हालांकि विद्रोह असफल रहा लेकिन इससे जाट यादव किसानों को नई आशा मिली और उनमें गोकुल को लेकर मुगलों के ख़िलाफ़ भयंकर रोष पैदा हुआ। गोकुल के विद्रोह से सिनसिनी (भरतपुर से कुछ किलोमीटर दूर) के प्रमुख राजा राम और भाई ब्रिज राज ने सीखा और अपनी सैन्य रणनीतियों में बदलाव किए। 1681 में वापिस सिनसिनी में विद्रोह शुरू हुआ और आगरा का फौजदार मुलता फत खान विद्रोह में मारा गया। लेकिन 1682 में मुगल सेना ने सिनसीनी को घेर लिया और उस पर कब्ज़ा कर लिया। युद्ध में लड़ते हुए अपने बेटे के साथ ब्रिज राज शहीद हो गया।
इसके बाद राजा राम ने अपनी सेना को संगठित किया और जंगल के अंदर अपने दुर्ग और पोस्ट बनाई और खुले में लड़ाई की जगह छापामार गोर्रिला वार फेयर की नीति बनाई और आगरा के आस-पास के रास्तों पर संगठित लूट शुरू की।
यहां ये बात ध्यान देने की है कि ये विद्रोही मात्र किसान थे कोई राजा नहीं। इनके पास धन और सेना की कमी थी और लूट के माध्यम से इन्होने मुगल एंड ऑर्डर इन इलाकों से बिल्कुल ख़तम सा कर दिया था। कहते हैं कि मथुरा की जामा मस्जिद के अलावा कोई दूसरी जगह ऐसी नहीं थी जो सुरक्षित हो।
लेकिन मुगल सेना राजा राम को पकड़ने में नाकामयाब रहे। आगे राजा राम ने अकबर के मकबरे को भी लूटने की कोशिश की लेकिन तत्कालीन मुगल फौजदार अबुल फजल ने लूट नाकामयाब कर दी। इससे खुश होकर दरबार ने उसके मनसब को बड़ा कर 200 सवार कर दिया और राजा राम को पकड़ने के लिए उसके सर पर बहुत बड़ा इनाम रखा गया।
लेकिन कुछ ही समय बाद राजा राम ने फिर अकबर के मकबरे पर हमला किया और इस बार मकबरे के गेटों को तोड़ जाट आग बढ़े और मकबरे को बर्बाद कर जला दिया गया। सोना-चांदी लूट ली गई और कब्र को खोद कर उसकी हड्डियों को जला दिया गया और आग लगा दी गई।
इसके बाद जाट बडे और आगरा के ताजमहल तक को लूट लाए थे। इसके बाद राजाराम का भय दिल्ली तक पहुंच गया था। इस विद्रोह को औरंगज़ेब को अपने बेटे आज़म को दबाने के लिए भेजना पड़ा। आप दिल्ली में जाटो के भय का अंदाज़ा इस बात से लगा सकते हैं, की बाबर की कब्र को तुरंत काबुल भेजा गया और हुमायूं की कब्र को कलनुर पंजाब भेजा गया था।
आगे हुए युद्ध में राजाराम ने मुगल कमांडर अगार खान को मार दिया। मुगल सेना से लड़ते हुए एक बदूक धारी ने पीछे से वार करके राजा राम को मार दिया लेकिन अब जाट रुकने वाले नहीं थे और सूरजमल ने जाट एम्पायर खड़ा कर दिया और बाद में जाटों ने दिल्ली को भी जीता था।