तारेक फतह को पाकिस्तान ने अपने देश से क्यों निकाल दिया था?

0
Tariq Fateh
  पाकिस्तान न तो एक लोकतांत्रिक देश है और न ही सऊदी अरब जैसा पूर्ण इस्लामिक देश। वस्तुतः यह एक फौज द्वारा कब्जा किये हुए हिंदुस्तान के कुछ विस्थापित लोगों का एक हुजूम है, जिसे वहाँ की फौज अपनी मान्यताओं के अनुसार नियंत्रण कर शासन कर रही है। 
  जाहिर है, फौज की मान्यताओं से तालमेल नही बैठने पर वहाँ के नागरिकों के तीन ही हश्र होना सुनिश्चित किया गया है। (1) कत्ल होना (2) राष्ट्रद्रोही आरोप लगाकर जेल में डाल देना (3) अपनी जान बचाकर किसी लोकतांत्रिक देश मे शरण लेना।
  फ़िलहाल तो पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और फौजी शासक जनाब परवेज मुशर्रफ़ खुद ही मुल्क से बाहर है, तो तारिक फ़तह साहब की उनके सामने बिसात ही क्या है? कुल मिलाकर पाकिस्तान में रहने की बुनियादी शर्त यही है कि वहाँ की फौज के सुर से सुर मिलाना जरूरी है।
  हालांकि दुनियादारी की रस्म निभाने का दिखावा करने के लिये वहाँ चुनाव भी होते है, किन्तु फौज का उसमे सीधा दखल होता है। इमरान खान नियाजी चूंकि क्रिकेटर से बने राजनेता थे। राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय राजनीति की कम समझ होना ही फौज की दृष्टि में उनकी विशेषता बनी। इसीलिये इमरान खान फौज के पसंदीदा उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत हुए।
  अब जाहिर है, इमरान खान के प्रधानमंत्री के रूप में काबिज होने के बाद रिवायती ढंग से नवाज शरीफ को शरीफ से बेईमान करार होना ही था, सो हो गए और जेल में इलाज से मोहताज होकर विदेशी अस्पताल में एडमिट होने की बाट जोह रहे है।
  फ़िलहाल पाकिस्तान की फौज विभिन्न मामलों में अंतरराष्ट्रीय दबाव में है अतः मौके पर चौका मारते हुए मौलाना फजलुर्रहमान ने इमरान के विरुद्ध बगावती तेवर दिखाए है। बहरहाल वहाँ की फौज के नुमाइंदे का वजूद उतना ही रहता है जितना फौज उन्हें बख्शती है।
  तारीक फतह तो वह शख्स है, जो सच को सच कहने का हौंसला रखते है जिसे सुनना पाकिस्तान की फितरत में नही है। यह भी सच है कि एक बुद्धिजीवी इतिहासकार और पत्रकार की पीत पत्रकारिता उन्हें पाकिस्तान में रहकर भी समृद्ध बना सकती थी, किन्तु यह उन्हें गवारा नही था, फिर तो वही होना था, जो हुआ यानी की देश निकाला।

Post a Comment

0Comments
Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top